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तुम वही मन हो कि कोई दूसरे हो
कल तुम्हें सुनसान अच्छा लग रहा था
आज भीड़ें भा रही हैं
तुम वही मन हो कि कोई दूसरे हो!गोल काले पत्थरों से घिरे उस सुनसान...
तिजारत
बिक गया मन...झूठ और सच की
लगी थी बोलियाँ
और
ख़रीदारों की थी
लम्बी क़तारेंवो,
जो अपनों के
कभी अपने ना हुए,
ग़ैर की तकलीफ़ में हमदर्द
थे जोपीठ पर अपनों के
करते वार लेकिन,
पाँव जिनके चूमते थे
सामने सेभाई, बेटा, बाप, माँ
सबके बने थे...पर नहीं थे।रात की तारीकी
हाथों में छुपाए
जो सुबह के मुँह पे
कालिख पोत देतेऔर बनकर
रोशनाई के फ़रिश्ते
अनगिनत दीये जलाकर
झूमते थेवो सभी
महँगे लिबासों में
लिपटकर,
चेहरे पर पहने
तिरस्कारों का लहजासड़क पे बोली लगाने
आ गए थे।दाम जो भी
चाहिए
मुँह माँगा ले लो।
झूठ हमको
बेच दो,
सच मार डालो;और चमड़ी सच की
भी बेचो
हमें ही।झूठ को हम
सच बनाकर बेचेंगे...
व्यापार है।खेलना जज़्बात से भी
एक कारोबार है।मोल भावों का
नहीं कुछ,
फेंक डालो।आपके जज़्बात की
क़ीमत मिलेगी
...बेच डालो।सोच कुछ पल;
घर में फैली
भूख, बीमारी को देखा
बिलबिलाती बेटी,
लाचारी को देखाभावनाओं को
हथेली पर सजाए
आ गया बाज़ार में,
सूनी आँखें मूँदकर
बिकने खड़ा
क़तार में।वो लगी बोली -मेरे हाथों में
रखकर चन्द सपने,
छीन ली उसने
मेरी भावों भरी
वो पोटली।मैं अभावों में
घिरा-सा,
मैं डरा-सा
अधमरा-सा।हतप्रभ-सा
मूक-सा
अवाक-साहवन की समिधा,
चिता की
ख़ाक-सा...था खड़ा थामे
विवशताओं का दामन...बिक गया मन।
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ
सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुःख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति...
उड़ता फिरता पगला मन ये
'Udta Phirta Pagal Man Yeh', a poem by Priyanki Mishraउड़ता फिरता पगला मन ये,
हवा में लहराते किसी किशोरी के
करारे रंगों वाले बांधनी दुपट्टे की...
मन की चिड़िया
वह चिड़िया जो मेरे आँगन में चिल्लायी
मेरे सब पिछले जन्मों की
संगवारिनी-सी इस घर आयी;
मैं उसका उपकार चुकाऊँ किन धानों से!हर गुलाब को जिसने मेरे...
मन करता है
'Man Karta Hai', a poem by Baba Nagarjunमन करता है :
नंगा होकर कुछ घण्टों तक सागर-तट पर मैं खड़ा रहूँ
यों भी क्या कपड़ा मिलता...
हमारे दिल सुलगते हैं
'Humare Dil Sulagte Hain', a poem by Shamsher Bahadur Singhलगी हो आग जंगल में कहीं जैसे,
हमारे दिल सुलगते हैं।हमारी शाम की बातें
लिये होती हैं...
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
अपरिचित पास आओ!
आँखों में सशंक जिज्ञासा
मुक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
हिलो...
मन के पार
'Man Ke Paar', a poem by Preeti Karnश्रेष्ठतम कविता लिखना
उस वक़्त
सम्भव हुआ होगा
जब खाई को पाटने के
लिए नहीं बची रही
होगी
कच्ची मिट्टी की
ढेर।
ऊँचे टीलों की...
दिल पीत की आग में जलता है
दिल पीत की आग में जलता है, हाँ जलता रहे, उसे जलने दो
इस आग से लोगों दूर रहो, ठण्डी न करो, पंखा न झलोहम...
नज़्र-ए-दिल
अपने दिल को दोनों आलम से उठा सकता हूँ मैं
क्या समझती हो कि तुम को भी भुला सकता हूँ मैं
कौन तुमसे छीन सकता है...
रिक्त मन
अंजुरी भर प्रार्थनाएँ
बड़ी मुश्किल से जुटा पाती हूँ
विषमता से उपजा
आर्तगान!
श्रद्धा के दुर्लभ पुष्प
आस के तरु से
सहेजकर रखती हूँ
विभिन्न रंग की अनगिनत
कामना के संग।
हे देव!
विषमता...