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रेल की रात
"किसी स्त्री को देखते ही अब मेरे हृदय में एक श्रद्धा-पूर्ण उत्सुकता का भाव जाग पड़ता है। ऐसा मालूम होने लगता है, जैसे अपने जीवन में पहले स्त्री को देखा भी न हो, अब पहली बार इस आनंददायिनी रहस्यमयी जाति के अस्तित्व का अनुभव मुझे हुआ हो।"
#सालगिरह #IlachandraJoshi
भेड़िये
"लोग कहते हैं, अकेला भेड़िया कायर होता है। यह झूठ है। भेड़िया कायर नहीं होता, अकेला भी वह सिर्फ चौकन्ना होता है। तुम कहते हो लोमड़ी चालाक होती है, तो तुम भेड़ियों को जानते ही नहीं।"
'भेड़िये' एक ऐसी कहानी है जिसे हिन्दी के साहित्यकारों ने एक लम्बे अरसे तक हिन्दी की मौलिक कहानी न मानकर, अंग्रेजी की किसी कहानी का अनुवाद माना! इस पूर्वाग्रह के पीछे एक कारण यह भी रहा कि भुवनेश्वर को अंग्रेजी साहित्य का अच्छा ज्ञान था! बाद में इसी कहानी को नयी कहानी की दिशा में पहली कहानी भी माना गया जिसने गाँव, कस्बों, शहरों और प्रेम के किस्सों से कहानी को बाहर निकाला.. घोर व्यक्तिवाद की निशानी यह कहानी लिखकर भुवनेश्वर हिन्दी साहित्य में हमेशा के लिए अमर हो गए... पढ़िए!
रहमान का बेटा
कहानी: 'रहमान का बेटा' - विष्णु प्रभाकर
क्रोध और वेदना के कारण उसकी वाणी में गहरी तलखी आ गई थी और वह बात-बात में चिनचिना...
एक जीवी, एक रत्नी, एक सपना
'हाय री स्त्री, डूबने के लिए भी तैयार है, यदि तेरा प्रिय एक सागर हो!'
'फिर उस लड़की का भी वही अंजाम हुआ, जो उससे पहले कई और लड़कियों का हो चुका था और उसके बाद कई और लड़कियों का होना था। वह लड़की बम्बई पहुँचकर कला की मूर्ती नहीं, कला की कब्र बन गई, और मैं सोच रही थी, यह रत्नी.. यह रत्नी क्या बनेगी?'
ग्राम
'ग्राम' - जयशंकर प्रसाद
टन! टन! टन! स्टेशन पर घंटी बोली।
श्रावण-मास की संध्या भी कैसी मनोहारिणी होती है! मेघ-माला-विभूषित गगन की छाया सघन रसाल-कानन में...
‘मारे गये गुलफ़ाम’ उर्फ़ ‘तीसरी क़सम’
"आप मुझे गुरू जी मत कहिए।"
"तुम मेरे उस्ताद हो। हमारे शास्तर में लिखा हुआ है, एक अच्छर सिखानेवाला भी गुरू और एक राग सिखानेवाला भी उस्ताद!"
"इस्स! सास्तर-पुरान भी जानती हैं! ...मैंने क्या सिखाया? मैं क्या ...?"
हीरा हँस कर गुनगुनाने लगी - "हे-अ-अ-अ- सावना-भादवा के-र ...!"
हिरामन अचरज के मारे गूँगा हो गया। ...इस्स! इतना तेज जेहन! हू-ब-हू महुआ घटवारिन!
सैक्स फंड
'सैक्स फंड' - सुषमा गुप्ता
"आंटी जी चंदा इकठ्ठा कर रहें हैं। आप भी कुछ अपनी इच्छा से दे दीजिए।"
"अरे लड़कियों, ये काॅलेज छोड़ कर...
अलग्योझा
क्या आप अपने माता-पिता को समझाते-समझाते हार गए हैं कि वे ऐसे रिश्तेदारों/भाईयों का साथ न दें या उनकी शर्म/आदर न करें जो उनसे स्नेह तक नहीं रखते? लेकिन उनका जवाब कुछ ऐसा होता है कि- "लाठी मारने से पानी अलग हो सकता है भला?"
प्रेमचंद की कहानी 'अलग्योझा' एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें झाँकने से हमें पता लगता है कि हमारे अपनों का यह 'उदार' व्यवहार, उनकी धोखा खाने की आदत की वजह से नहीं है, बल्कि उस दृष्टि की वजह से है जिससे पहले लोग रिश्तों को देखा करते थे! एक स्तर पर प्रासंगिक न भी लगे, फिर भी पढ़ कर देखिए! :)
मज़दूर का एक दिन
"बाबूजी ठीक ही तो कहते थे कि गरीब का दिल तो बेबसी का ठिकाना होता है।"
कवि का हृदय
"यदि कवि के हृदय में हिम है तो तुम वसन्त ऋतु की उष्ण समीर का झोंका बन जाओगी, जो हिम को भी पिघला देगा। यदि उसमें जल की गहराई है तो तुम उस गहराई में मोती बन जाओगी। यदि निर्जन वन है तो तुम उसमें सुख और शांति के बीज बो दोगी। यदि अजंता की गुफा है तो तुम उसके अंधेरे में सूर्य की किरण बनकर चमकोगी।"
मगर शेक्सपियर को याद रखना
"खुशी के दिन आसमान पर नए चाँद को जन्म देंगे, लेकिन ये पुराना चाँद घटने में कितनी देर लगा रहा है, इसने मेरी ख्वाहिशात को कुछ इस तरह रोक रखा है, जैसे कोई सौतेली माँ या रईस बेवा एक नौजवान के प्रेम पर पाबंदी लगा दे..।"
"चालाक नवयुवक स्वाभाविक रूप से घृणा से भरे हुए ही होते हैं। वे शिकायत करते-करते थक जाते हैं कि दुनिया उनकी प्रतिभा का सम्मान नहीं करती। वे कुछ देना चाहते हैं पर कोई लेना नहीं चाहता। वे प्रसिद्धि पाने के लिए आतुर होते हैं पर वह उनके रास्ते आते नहीं दिखती।"
धुआँ
एक मुसलमान चौधरी का बड़ा सम्मान था गांव में, हिन्दू और मुस्लिम दोनों वर्गों में, लेकिन केवल तब तक जब तक कि उनकी मौत के बाद उनका वसीयतनामा सामने न आ गया, जिसमें लिखा था कि उन्हें दफनाया न जाए, बल्कि जलाया जाए! हालात ऐसे बने कि कब्र भी खोदी गयी और आग की लपटों का धुआँ भी उठा.. मगर यह कैसे और क्यों हुआ, पढ़िए गुलज़ार साहब की इस बेहतरीन कहानी में!