Tag: Hindi kavita
खजूर बेचता हूँ
न सीने पर हैं तमगे
न हाथों में कलम है
न कंठ में है वीणा
न थिरकते कदम हैं
इस शहर को छोड़कर
जिसमें घर है मेरा
उस ग़ैर मुल्क...
एक अतिरिक्त ‘अ’ – रश्मि भारद्वाज
भारतीय ज्ञानपीठ के जोरबाग़ वाले बुकस्टोर में एक किताब खरीदने गया था। खुले पैसे नहीं थे तो बिलिंग पर बैठे सज्जन ने सुझाया कि...
पथिक
चलते-चलते रुक जाओगे किसी दिन,
पथिक हो तुम,
थकना तुम्हारे न धर्म में है
ना ही कर्म में,
उस दिन तिमिर जो अस्तित्व को
अपनी परिमिति में घेरने लगेगा,
छटपटाने...
हम अनंत तक जाएँगे
'Hum Anant Tak Jaenge', poetry by Shiva
आज या कल?
सत्य वह है जो आज है?
या वह जो कल था?
सत्य वह भी हो सकता है
जो कल...
बच्चन की त्रिवेणी – मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश
आलोचना अच्छी है, अगर करनी आती हो। और अगर लेनी आती हो तो और भी। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि न तो कोई...
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की प्रेम कविताएँ
अमूमन रामधारी सिंह 'दिनकर' का नाम आते ही जो पंक्तियाँ किसी भी कविता प्रेमी की ज़बान पर आती हैं, वे या तो 'कुरुक्षेत्र' की...
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का जूता, मोजा, दस्ताने, स्वेटर और कोट
जूता, मोजा, दस्ताने, स्वेटर और कोट- ये सब चीज़ें कपड़ों की किसी अलमारी से नहीं, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के कविता संग्रह 'खूटियों पर टंगे लोग' के पन्नों...