Tag: Hindi poem

Kumar Ambuj

अकुशल

बटमारी, प्रेम और आजीविका के रास्तों से भी गुज़रना होता है और जैसा कि कहा गया है इसमें कोई सावधानी काम नहीं आती अकुशलता ही देती...
Deepti Naval

कोई टाँवाँ-टाँवाँ रोशनी है

कोई टाँवाँ-टाँवाँ रोशनी है चाँदनी उतर आयी बर्फ़ीली चोटियों से तमाम वादी गूँजती है बस एक ही सुर में ख़ामोशी की यह आवाज़ होती है… तुम कहा करते हो न! इस...
Anuradha Annanya

एक पन्ना और बस मैं

मैंने सारे क्षोभ को बटोरा और कलम उठाई फिर अपने सारे दुखों को ,निराशा को, थकान को शब्दों मे पिरो कर कागज़ पर रसीद कर दिया जैसे पूरा...
Kuber Dutt

हट जा… हट जा… हट जा

आम रास्ता ख़ास आदमी... हट जा, हट जा, हट जा, हट जा। ख़ास रास्ता आम आदमी हट जा, हट जा, हट जा, हट जा। धूल फाँक ले, गला बन्द कर, जिह्वा काट...
Harivansh Rai Bachchan

मेरे जीवन का सबसे बड़ा काम

"तेज, मैंने रात को यह स्वप्न देखा है कि जैसे मर गया हूँ।" मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त ने बच्चन से पूछा कि उन्होंने जीवन में सबसे बड़ा काम क्या किया था, तो बच्चन के मन में आया कि कह दूँ 'मधुशाला' लिखी है, लेकिन फिर कुछ और जवाब दे दिया.. और इस जवाब में ही इस कविता का सार भी छिपा है.. ज़रूर पढ़िए! :)
Ankush Kumar

अंकुश कुमार की कविताएँ

वक़्त वक़्त रुककर चल रहा है मेरे बीच से गुज़रते हुए, मैं देखता हूँ कि कई सदियाँ गुज़र गयी हैं मुझसे होकर मेरे समूचे अस्तित्व में कोयले की कालिख लगी...
Malay

शामिल होता हूँ

मैं चाँद की तरह रात के माथे पर चिपका नहीं हूँ, ज़मीन में दबा हुआ गीला हूँ गरम हूँ फटता हूँ अपने अंदर अंकुर की उठती ललक को महसूसता देखने और रचने...
Harishankar Parsai

शूल से है प्यार मुझको, फूल पर कैसे चलूं मैं?

हास्य और तंज़ को पलटकर देखा जाए तो संवेदना और मर्म कोने में कहीं छिपकर बैठे होते हैं.. अपने तीखे और मारक चोट करने वाले व्यंग्य के लिए जाने जाने वाले हरिशंकर परसाई ने कविताएँ भी लिखी हैं जिनका विषय जितना सामाजिक है, उतना ही व्यैक्तिक.. पढ़िए उन्हीं में एक कविता..
Kunwar Bechain

चीज़ें बोलती हैं

अगर तुम एक पल भी ध्यान देकर सुन सको तो, तुम्हें मालूम यह होगा कि चीजें बोलती हैं। तुम्हारे कक्ष की तस्वीर तुमसे कह रही है बहुत दिन हो गए...
Baba Nagarjuna

गुलाबी चूड़ियाँ

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ, सात साल की बच्ची का पिता तो है! सामने गियर से उपर हुक से लटका रक्खी हैं काँच की चार...
Om Prakash Valmiki

कविता और फ़सल

ठण्डे कमरों में बैठकर पसीने पर लिखना कविता ठीक वैसा ही है जैसे राजधानी में उगाना फ़सल कोरे काग़ज़ों पर। फ़सल हो या कविता पसीने की पहचान हैं दोनों ही। बिना पसीने...
Baba Nagarjuna

आओ रानी

"आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी, यही हुई है राय जवाहरलाल की रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की यही हुई है राय जवाहरलाल की.." यह कविता नागार्जुन ने तब लिखी थी, जब भारत की आज़ादी के बाद ब्रिटेन की महारानी भारत आयी थीं.. तत्कालीक सरकार पर अविश्वास और जिनकी गुलामी भारत विभाजन में परिणत हुई, उन्हीं के स्वागत पर व्यंग्य इस कविता में साफ झलकता है!
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