Tag: Hindi poetry

Shamser Bahadur Singh

बात बोलेगी

बात बोलेगी, हम नहीं। भेद खोलेगी बात ही। सत्य का मुख झूठ की आँखें क्या देखें! सत्य का रुख़ समय का रुख़ हैः अभय जनता को सत्य ही सुख है सत्य ही सुख। दैन्य दानव; काल भीषण;...
Shail Chaturvedi

शायरी का इंक़लाब

एक दिन अकस्मात एक पुराने मित्र से हो गई मुलाकात कहने लगे- "जो लोग कविता को कैश कर रहे हैं वे ऐश कर रहे हैं लिखने वाले मौन हैं श्रोता तो...
Alok Dhanwa

अचानक तुम आ जाओ

इतनी रेलें चलती हैं भारत में कभी कहीं से भी आ सकती हो मेरे पास कुछ दिन रहना इस घर में जो उतना ही तुम्हारा भी है तुम्हें देखने की प्यास...
Smoke, Industry, Pollution

धुआँ

कारखानों के धुएँ का रंग, काला होता है क्योंकि, उसमें लगा है खून, किसी मरी हुई तितली का, फूल का, शजर का धुआँ जो फैला हुआ है ज़मीन से...
Sarveshwar Dayal Saxena

पोस्टमार्टम की रिपोर्ट

यह कविता हिन्दी की छोटी लेकिन सबसे सशक्त कविताओं में से एक है! समाज में गरीब होना तक कितना बड़ा अपराध बन जाता है, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने केवल चार पंक्तियों में बता दिया है.. पढ़िए! :)
Kunwar Bechain

पिन बहुत सारे

ज़िन्दगी का अर्थ मरना हो गया है और जीने के लिये हैं दिन बहुत सारे। इस समय की मेज़ पर रक्खी हुई ज़िन्दगी है 'पिन-कुशन' जैसी दोस्ती का अर्थ चुभना हो गया है और...
Deepti Naval

अजनबी

'Ajnabi', a poem by Deepti Naval अजनबी रास्तों पर पैदल चलें कुछ न कहें अपनी-अपनी तन्हाइयाँ लिए सवालों के दायरों से निकलकर रिवाजों की सरहदों के परे हम यूँ ही साथ...
Viren Dangwal

प्रेम कविता

प्यारी, बड़े मीठे लगते हैं मुझे तेरे बोल! अटपटे और ऊल-जुलूल बेसर-पैर कहाँ से कहाँ तेरे बोल! कभी पहुँच जाती है अपने बचपन में जामुन की रपटन-भरी डालों...
Kushagra Adwaita

तीन कविताएँ

मेरे अंदर एक पागलखाना है मेरे अंदर एक पागलखाना है तरह-तरह के पागल हैं एक पागल हरदम बोलता ही रहता है, दूसरा पागल ख़ामोशी ओढ़े है बस नींद में...
Kunwar Narayan

सूर्योदय की प्रतीक्षा में

वे सूर्योदय की प्रतीक्षा में पश्चिम की ओर मुॅंह करके खड़े थे दूसरे दिन जब सूर्योदय हुआ तब भी वे पश्चिम की ओर मुॅंह करके खड़े थे जबकि सही दिशा-संकेत...

ग्लोबल वॉर्मिंग

मेरे दिल की सतह पर टार जम गया है साँस खींचती हूँ तो खिंची चली आती है कई टूटे तारों की राख जाने कितने अरमान निगल गयी हूँ साँस...
Badrinarayan

प्रेमपत्र

'Prempatra', a poem by Badrinarayan प्रेत आएगा किताब से निकाल ले जायेगा प्रेमपत्र गिद्ध उसे पहाड़ पर नोच-नोच खायेगा चोर आयेगा तो प्रेमपत्र ही चुरायेगा जुआरी प्रेमपत्र ही दाँव...
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