Tag: Hindi poetry
व्याकुल चाह
सोया था संयोग उसे
किस लिए जगाने आए हो?
क्या मेरे अधीर यौवन की
प्यास बुझाने आए हो?
रहने दो, रहने दो, फिर से
जाग उठेगा वह अनुराग,
बूँद-बूँद से...
एक बूँद
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,
आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी?
देव...
ज्योति शोभा की कविताएँ
आमंत्रण की कला
दस्तक का आधा रस किवाड़ सोख लेता है
शेष आधा टपक जाता है
पककर इस ऋतु
ऊपर के ताखे में संकोच रखकर सोती है देह
अलमारियों...
पाँच कविताएँ
ख्यालों को बहने दो
ख्यालों को बहने दो,
बनके नदिया,
किसी प्यासे तक पहुंचेंगे
उड़ने दो,
बनके चिड़िया आसमानों में
किसी सुनसान कानों में
जा के चहकेंगे..
गाँव को देखा
हमने तुमने
गाँव को...
गौरव अदीब की नयी कविताएँ
गौरव अदीब की कुछ नयी कविताएँ
1)
टाइम मशीन कविता के लिए:
कई बार तुम्हारी ओर से मैंने ख़ुद को लिखा पत्र
लिखीं कुछ कवितायेँ भी
तुम्हारी कहानी ख़ुद...
विशेष चंद्र ‘नमन’ की कविताएँ
मौजूदगी
एक बेशकीमती दिन बचा रहता है
कल के आने तक
हम बांसुरी में इंतज़ार के पंख लपेट हवा को बुलाने से ज़्यादा, कुछ नहीं करते
एक अनसुनी...
बालकवि बैरागी की बाल कविताएँ
Poems: Balkavi Bairagi
चाँद में धब्बा
गोरे-गोरे चाँद में धब्बा
दिखता है जो काला-काला,
उस धब्बे का मतलब हमने
बड़े मज़े से खोज निकाला।
वहाँ नहीं है गुड़िया-बुढ़िया
वहाँ नहीं बैठी है...
जोशना बैनर्जी आडवानी की कविताएँ
बू
मैंने एक जगह रुक के डेरा डाला
मैंने चाँद सितारों को देखा
मैंने जगह बदल दी
मैंने दिशाओं को जाना
मैं अब ख़ानाबदोश हूँ
मैं नख़लिस्तानों के ठिकाने जानती...
‘माँ’ के लिए कुछ कविताएँ
'माँ' - मोहनजीत
मैं उस मिट्टी में से उगा हूँ
जिसमें से माँ लोकगीत चुनती थी
हर नज्म लिखने के बाद सोचता हूँ-
क्या लिखा है?
माँ कहाँ इस...
उत्कृष्टता
'Utkrishtta', a poem by Uday Prakash
सुन्दर और उत्कृष्ट कविताएँ
धीरे-धीरे ले जाएँगी सत्ता की ओर
सूक्ष्म सम्वेदनाओं और ख़फ़ीफ़ भाषा का कवि
देखा जाएगा अत्याचारियों के भोज...
अकेले क्यों?
हम उस यात्रा में
अकेले क्यों रह जाएँगे?
साथ क्यों नहीं आएगा हमारा बचपन,
उसकी आकाश-चढ़ती पतंगें
और लकड़ी के छोटे-से टुकड़े को
हथियार बना कर दिग्विजय करने का...
पत्ते नीम के
तालियों से बजे पत्ते
नीम के।
अनवरत चलती रही थी, थक गयी,
तनिक आवे पर ठहरकर पक गयी,
अब चढ़ी है हवा हत्थे
नीम के।
था बहुत कड़वा मगर था...