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विनीता अग्रवाल की कविताएँ
विनीता अग्रवाल बहुचर्चित कवियित्री और सम्पादक हैं। उसावा लिटरेरी रिव्यू के सम्पादक मण्डल की सदस्य विनीता अग्रवाल के चार काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके...
फ़र्क़ नहीं पड़ता
हर बार लौटकर
जब अन्दर प्रवेश करता हूँ
मेरा घर चौंककर कहता है 'बधाई'
ईश्वर
यह कैसा चमत्कार है
मैं कहीं भी जाऊँ
फिर लौट आता हूँ
सड़कों पर परिचय-पत्र माँगा...
घर की ओर
वह—
जिसकी पीठ हमारी ओर है
अपने घर की ओर मुँह किये जा रहा है
जाने दो उसे
अपने घर।
हमारी ओर उसकी पीठ—
ठीक ही तो है
मुँह यदि होता
तो...
राहुल तोमर की कविताएँ
प्रतीक्षा
उसकी पसीजी हथेली स्थिर है
उसकी उँगलियाँ किसी
बेआवाज़ धुन पर थिरक रही हैं
उसका निचला होंठ
दाँतों के बीच नींद का स्वाँग भर
जागने को विकल लेटा हुआ...
ईंटें
तपने के बाद वे भट्टे की समाधि से निकलीं
और एक वास्तुविद के स्वप्न में
विलीन हो गईं
घर एक ईंटों भरी अवधारणा है
जी बिलकुल ठीक सुना...
घर
अब मैं घर में पाँव नहीं रखूँगा कभी
घर की इक-इक चीज़ से मुझको नफ़रत है
घर वाले सब के सब मेरे दुश्मन हैं
जेल से मिलती-जुलती...
‘शहर में गाँव’ से नज़्में
यहाँ प्रस्तुत सभी नज़्में निदा फ़ाज़ली के सम्पूर्ण काव्य-संकलन 'शहर में गाँव' से ली गई हैं। यह संकलन मध्य-प्रदेश उर्दू अकादमी, भोपाल के योगदान...
यह कहानी नहीं
अमृता प्रीतम की आत्मकथा 'अक्षरों के साये' से
पत्थर और चूना बहुत था, लेकिन अगर थोड़ी-सी जगह पर दीवार की तरह उभरकर खड़ा हो जाता,...
किसके घर में
एक दरवाज़ा है जो दो दुनियाओं को एक-दूसरे से अलग करता है
इसके कम से कम एक ओर हमेशा अंधेरा रहता है
घर से निकलते वक़्त...
स्वप्न के घोंसले
स्वप्न में पिता घोंसले के बाहर खड़े हैं
मैं उड़ नहीं सकती
माँ उड़ चुकी है
कहाँ
कुछ पता नहीं
मेरे आगे किताब-क़लम रख गया है कोई
और कह गया...
कविताएँ — मई 2020 (दूसरा भाग)
मैना
निष्ठुर दिनों में देखा है
कोई नहीं आता।
मैना की ही बात करता हूँ
कई मौसमों के बीत जाने पर आयी है
मैं तो बच गया—
विस्मृत हो रही...
घर
1
मेरा घर
दो दरवाज़ों को जोड़ता
एक घेरा है
मेरा घर
दो दरवाज़ों के बीच है
उसमें किधर से भी झाँको
तुम दरवाज़े से बाहर देख रहे होगे
तुम्हें पार का...