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मनुष्य
दिखते रहने के लिए मनुष्य
हम काटते रहते हैं अपने नाख़ून
छँटवाकर बनाते-सँवारते रहते हैं बाल
दाढ़ी रोज़ न सही तो एक दिन छोड़कर
बनाते ही रहते हैं
जो...
आदमी का दुःख
राजा की सनक
ग्रहों की कुदृष्टि
मौसमों के उत्पात
बीमारी, बुढ़ापा, मृत्यु, शत्रु, भय
प्रिय-बिछोह
कम नहीं हैं ये दुःख आदमी पर!
ऊपर से
जब घर जलते हैं
तो आदमी के दिन...
मेरा दावा
'Mera Dawa', a poem by Rahul Boyal
मनुष्य होने का मेरा दावा ख़ारिज हो गया
देवता तो मैं किसी क़ीमत पर न था
पशु होने की विचारधारा कभी...