Ignou MA Hindi Study Material, Ignou MA Hindi, Ignou Hindi, Ignou Upanyaas evam Kahani. Read here the literature pieces from the syllabus of Ignou MA Hindi.
Tag: IGNOU MA Hindi Study Material (MHD)
भारत-दुर्दशा
रोवहु सब मिलि के आवहु भारत भाई।
हा! हा! भारत दुर्दशा न देखी जाई॥
सबके पहिले जेहि ईश्वर धन बल दीनो।
सबके पहिले जेहि सभ्य विधाता कीनो॥
सबके...
आधे-अधूरे
"वही महेन्द्र जो दोस्तों के बीच दब्बू-सा बना हलके-हलके मुस्कराता है, घर आ कर एक दारिंदा बन जाता है। पता नहीं, कब किसे नोच लेगा, कब किसे फाड़ खाएगा!"
बुख़ार में कविता
'Bukhaar Mein Kavita', a poem by Shrikant Verma
मेरे जीवन में एक ऐसा वक़्त आ गया है
जब खोने को
कुछ भी नहीं है मेरे पास—
दिन, दोस्ती, रवैया,
राजनीति,
गपशप,...
‘औरत’ – नुक्कड़ नाटक – जन नाट्य मंच
"सास-ससुर की आज्ञा मानोगी। पति को साक्षात भगवान जानोगी, पहले उन्हें खिलाओगी, फिर खुद खाओगी। पति ससुर अन्याय भी करें तो उसे न्याय मानोगी, कभी पलट कर उत्तर नहीं दोगी, आँखें सदा नीची रखोगी, घर का काम काज संभालोगी।
फौरन कोई काम तलाश करोगी, सबेरे ही सब्जी मंडी से साग तरकारी लाओगी। फिर कुएँ से पानी। बाबा का हुक्का भरोगी। झाड़ू-पोंछा, चौका चक्की सब तुम्हीं संभालोगी।
इस घर में आराम करने नहीं बोझ बंटाने आई हो। अपनी सास को आराम दोगी। सारा काम संभालोगी।
तथास्तु!"
ताँबे के कीड़े
"बादलों ने सूरज की हत्या कर दी, सूरज मर गया। मैं दूसरे का बोझ ढोता हूँ। मेरे रिक्शे में आईने लगे हैं। आईने में मैं अपना मुँह देखता हूँ। सूरज नहीं रहा। अब धरती पर आईनों का शासन होगा। आईने अब उगने और न उगने वाले बीज अलग-अलग कर देंगे।"
न कोई कथा, न मंच विधान, केवल एक काला परदा और एक झुनझुना लिए हुए अनाउंसर स्त्री! अजीब सा रुका-रुका सा नाटक, किन्तु समझ लिया जाए तो अर्थ और प्रभाव से कोई अछूता नहीं रह सकता। यह नाटक आदमी को मशीन न बनने देने के लिए संघर्ष करता है और यह बताता है कि भय और मृत्यु का प्रतिरोध करने का सबसे सशक्त ढंग है- जीवन को जीने लायक बनाना! ज़रूर पढ़िए!
कलगी बाजरे की
'Kalgi Bajre Ki', a poem by Agyeya
हरी बिछली घास।
दोलती कलगी छरहरे बाजरे की।
अगर मैं तुम को ललाती साँझ के नभ की अकेली तारिका
अब नहीं कहता,
या...
त्रिशंकु
"अपने घर की किशोरी लड़की को छेड़ने वाले लड़कों को घर बुलाकर चाय पिलाई जाए और लड़की से दोस्ती करवाई जाए, यह सारी बात ही बड़ी थ्रिलिंग और रोमांचक लग रही थी।"
आधुनिक सोच रखना और उसे अपने व्यवहार में ढाल लेना दो अलग-अलग बातें हैं.. और इसका प्रमाण हम सबको अपने घरों में अक्सर देखने को मिलता है जब बातें तो बड़ी-बड़ी होती हैं लेकिन जब उन बातों पर अमल करने की बात आती है तो समाज और सोसाइटी सबसे बड़ा मुद्दा और भगवान् बन जाती है जिसके नियमों के विरुद्ध जाने का साहस हर किसी में नहीं होता! सोच और व्यवहार के इस अंतर का ही मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करती हैं मन्नू भंडारी अपनी इस कहानी 'त्रिशंकु' में! हिन्दी की एक उत्कृष्ट कहानी। पढ़िए!
‘मारे गये गुलफ़ाम’ उर्फ़ ‘तीसरी क़सम’
"आप मुझे गुरू जी मत कहिए।"
"तुम मेरे उस्ताद हो। हमारे शास्तर में लिखा हुआ है, एक अच्छर सिखानेवाला भी गुरू और एक राग सिखानेवाला भी उस्ताद!"
"इस्स! सास्तर-पुरान भी जानती हैं! ...मैंने क्या सिखाया? मैं क्या ...?"
हीरा हँस कर गुनगुनाने लगी - "हे-अ-अ-अ- सावना-भादवा के-र ...!"
हिरामन अचरज के मारे गूँगा हो गया। ...इस्स! इतना तेज जेहन! हू-ब-हू महुआ घटवारिन!
कुटज
'Kutaj', Hindi Nibandh by Hazari Prasad Dwivedi
कहते हैं, पर्वत शोभा-निकेतन होते हैं। फिर हिमालय का तो कहना ही क्या। पूर्व और अपार समुद्र -...
पुरस्कार
आज राष्ट्रवाद की आड़ में लोगों को स्वार्थी कहकर उनके विवेक पर प्रश्न उठाना आम बात है। फिर स्वार्थ की बात करें तो प्रेम से बड़ा स्वार्थ कोई है? लेकिन मधूलिका ने दोनों को साधा, यह इशारा किए बगैर कि उसकी मंशा किसी एक को भी साधने की है। पढ़िए जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध एवं उत्कृष्ट कहानी 'पुरस्कार'!
कुत्ते की पूँछ
"मनुष्यता का चस्का एक दफे लग जाने पर किसी को जानवर बनाये रखना भी तो सम्भव नहीं।"
क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि किसी से दोस्ती करके या किसी को अपने जीवन में जगह देकर आपने बड़ा महसूस किया हो? और बाद में उस व्यक्ति के आपसे खुलते जाने पर आपको अफ़सोस भी हुआ हो? यदि हाँ, तो यह कहानी बेसब्री से आपका इंतज़ार कर रही है!
धोखा
"बेईमानी तथा नीतिकुशलता में इतना ही भेद है कि जाहिर हो जाए, तो बेईमानी कहलाती है और छिपी रहे, तो बुद्धिमानी है।"