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प्रेमचंद का जैनेन्द्र को पत्र – 1, सितम्बर, 1933
जागरण कार्यालय, 1 सितम्बर, 1933
प्रिय जैनेन्द्र,तुम्हारा पत्र मिला। हाँ भाई, तुम्हारी कहानी बहुत देर में पहुँची। अब सितम्बर में तुम्हारी और 'अज्ञेय' जी की,...
अपना अपना भाग्य
"इसे खाने के लिए कुछ देना चाहता था", अंग्रेजी में मित्र ने कहा- "मगर, दस-दस के नोट हैं।"मैंने कहा- "दस का नोट ही दे दो।"सकपकाकर मित्र मेरा मुँह देखने लगे- "अरे यार! बजट बिगड़ जाएगा। हृदय में जितनी दया है, पास में उतने पैसे तो नहीं हैं।"