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जयशंकर प्रसाद की तुमुल-कोलाहलपूर्ण जीवन-गाथा
उपन्यास: 'कंथा'
लेखक: श्याम बिहारी श्यामल
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
समीक्षा/टिप्पणी: संगीता पॉल
हिन्दी की साहित्यिक दुनिया से वास्ता रखने वाला हर व्यक्ति जयशंकर प्रसाद के साहित्य से परिचित...
कंथा : जयशंकर प्रसाद के जीवन और युग पर केन्द्रित उपन्यास
मूर्धन्य साहित्यकार जयशंकर प्रसाद का साहित्य सर्वसुलभ है लेकिन उनके 'तुमुल कोलाहल' भरे जीवन की कहानी से दुनिया अब तक प्रायः अपरिचित रही है।...
अरे कहीं देखा है तुमने
अरे कहीं देखा है तुमने
मुझे प्यार करने वालों को?
मेरी आँखों में आकर फिर
आँसू बन ढरने वालों को?
सूने नभ में आग जलाकर
यह सुवर्ण-सा हृदय गलाकर
जीवन-संध्या...
भीख में
खपरल दालान में, कम्बल पर मिन्ना के साथ बैठा हुआ ब्रजराज मन लगाकर बातें कर रहा था। सामने ताल में कमल खिल रहे थे।...
मदन-मृणालिनी
"संसार भी बड़ा प्रपञ्चमय यन्त्र है। वह अपनी मनोहरता पर आप ही मुग्ध रहता है।"
"क्यों मदन, तुम बाबा के साथ न चलोगे?"
जिस तरह वीणा की झंकार से मस्त होकर मृग स्थिर हो जाता है, अथवा मनोहर वंशी की तान से झूमने लगता है, वैसे ही मृणालिनी के मधुर स्वर में मुग्ध मदन ने कह दिया- "क्यों न चलूँगा।"
मधुआ
"अच्छा, तो इस मुँह छिपाने का कोई कारण?"
"सात दिन से एक बूँद भी गले न उतरी थी। भला मैं कैसे मुँह दिखा सकता था!"
करुणा की विजय
"बिना किसी दूसरे को अपना सुख दिखाए हृदय भली-भाँति से गर्व का अनुभव नहीं कर पाता।"
बेड़ी
"भीख मँगवाने के लिए, बाप अपने बेटे के पैर में बेड़ी भी डाल सकता है और वह नटखट फिर भी मुस्कराता था। संसार, तेरी जय हो!"
अपराधी
"युवक के स्वर में परिचय था, परन्तु युवती की वासना के कुतूहल ने भय का बहाना खोज लिया! बाहर करकापात के साथ ही बिजली कड़की। वन-पालिका ने दूसरा हाथ युवक के कण्ठ में डाल दिया।
अन्धकार हँसने लगा।"
अघोरी का मोह
"आज तो भैया, मूँग की बरफी खाने को जी नहीं चाहता, यह साग तो बड़ा ही चटकीला है। मैं तो...."
"नहीं-नहीं जगन्नाथ, उसे दो बरफी...
इंद्रजाल
आज उसने अपने जूड़े में जंगली करौंदे के फूलों की माला लपेटकर, भरी मस्ती में जंगल की ओर चलने के लिए पैर बढ़ाया, तो भूरे ने डाँटकर कहा- "कहाँ चली?"
"यार के पास।" उसने छूटते ही कहा।
आकाशदीप
"चम्पा! मैं ईश्वर को नहीं मानता, मैं पाप को नहीं मानता, मैं दया को नहीं समझ सकता, मैं उस लोक में विश्वास नहीं करता। पर मुझे अपने हृदय के एक दुर्बल अंश पर श्रद्धा हो चली है।"