Tag: Janakraj Pareek
इन्तज़ार और
'Intezaar Aur', a poem by Janakraj Pareekसुमेश बाबू
देर तक
उसकी लुज-लुज छातियों से जूझते रहे
पर उरमला को
उसी तरह ठण्डा और ठस्स पाकर
झुँझलाए
और कमला बाई के...
रचनाधर्मी
और कुछ ठहरो
अभी मैं
व्यस्त हूँ।
मुझको अभी
आकार देना है
समय के पत्थरों को।मैं नहीं यह चाहता
ये मूक पत्थर
आदमी के हाथ में
पथराव के दिन
बेज़ुबाँ हथियार हों।चाहता हूँ
आदमी...