Tag: Jigisha Raj

चलो अब मिलते है

क्यूँ तुम इतने करीब से महसूस होने लगे हो? कुछ बातें ही तो होती हैं, हमारे बीच.. कुछ एहसास जैसे लगते हो तुम, बीती रात तो ख़्वाब ही थे...

ढूँढ रहे हैं तुम्हें

आज सुबह सुबह ढूँढ रही थी, बिस्तर पे, जो कल तुम छोड़ गए हो.. तुम्हारी गर्म साँसें, तकिये पे गिरे थे कुछ बाल मेरे, तुम्हारी उंगलियों में जो फंसे...

फ़ासले, सूनापन, माइने और नज़दीकी

फ़ासले जो कभी तय ना कर पाए, हमारे बीच का मौसम काग़ज़ पर सवार होकर, शायद ये लफ़्ज़, तुम तक पहुँचने में कामयाब हो जाए! हमारे भीतर ठहरा, गर्म सांसो का...

बहुत सन्नाटा है

तब भी बहुत सन्नाटा था, आज भी बहुत सन्नाटा है। जाड़े की उन रातों में, तेरे दामन में लिपटी हुई मैं, और हम दोनों की, एक-दूसरे में लिपटी हुई...

सन्नाटा

तब भी बहुत सन्नाटा था, आज भी बहुत सन्नाटा है। जाड़े की उन रातों में, तेरे दामन में लिपटी हुई मैं, और हम दोनों की, एक-दूसरे में लिपटी हुई...
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