Tag: Kedarnath Agarwal
धिक्कार है
आँख मूँद जो राज चलावै
अंधरसट्ट जो काज चलावै
कहे-सुने पर बाज न आवै
सब का चूसै—लाज न लावै
ऐसे अँधरा को धिक्कार!
राम-राम है बारम्बार!!
कानों में जो रुई...
प्रश्न
मोड़ोगे मन
या सावन के घन मोड़ोगे?
मोड़ोगे तन
या शासन के फन मोड़ोगे?
बोलो साथी! क्या मोड़ोगे?
तोड़ोगे तृण
या धीरज धारण तोड़ोगे?
तोड़ोगे प्रण
या भीषण शोषण तोड़ोगे?
बोलो साथी! क्या...
हमारी ज़िन्दगी
हमारी ज़िन्दगी के दिन,
बड़े संघर्ष के दिन हैं।
हमेशा काम करते हैं,
मगर कम दाम मिलते हैं।
प्रतिक्षण हम बुरे शासन,
बुरे शोषण से पिसते हैं।
अपढ़, अज्ञान, अधिकारों से
वंचित...
मज़दूर का जन्म
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ!
हाथी सा बलवान,
जहाज़ी हाथों वाला और हुआ!
सूरज-सा इंसान,
तरेरी आँखोंवाला और हुआ!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ!
माता रही विचार,
अँधेरा हरनेवाला...
वह चिड़िया जो
वह चिड़िया जो—
चोंच मारकर
दूध-भरे जुण्डी के दाने
रुचि से, रस से खा लेती है
वह छोटी सन्तोषी चिड़िया
नीले पंखों वाली मैं हूँ
मुझे अन्न से बहुत प्यार है।
वह चिड़िया...
जो जीवन की धूल चाटकर बड़ा हुआ है
जो जीवन की धूल चाटकर बड़ा हुआ है
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
जिसने सोने को खोदा, लोहा मोड़ा है
जो रवि के रथ...
ज़िन्दगी
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों को,
पेट-पूजा की कमाई में जुता मैं देखता हूँ!
सत्य के जारज सुतों को,
लंदनी गौरांग प्रभु...
फूल तुम्हारे लिए खिला है
हे मेरी तुम!
फूल तुम्हारे लिए खिला है-
लाल-लाल पंखुरियाँ खोले
गजब गुलाब।
हे मेरी तुम!
इसे देखकर चूमो;
चूम-चूमकर झूमो;
झूम-झूम कर नाच-गाओ;
कुटिल काल देखे,
मुँह बाये,
मुग्ध-मगन हो जाये,
नेह-नीर हो बरसे-हरसे;
जड़...
ईद मुबारक
हमको,
तुमको,
एक-दूसरे की बाहों में
बँध जाने की
ईद मुबारक।
बँधे-बँधे,
रह एक वृंत पर,
खोल-खोल कर प्रिय पंखुरियाँ
कमल-कमल-सा
खिल जाने की,
रूप-रंग से मुसकाने की
हमको,
तुमको
ईद मुबारक।
और
जगत के
इस जीवन के
खारे पानी के...
केदारनाथ अग्रवाल के कविता संग्रह ‘अपूर्वा’ से कविताएँ
केदारनाथ अग्रवाल के कविता संग्रह 'अपूर्वा' में उनकी 1968 से 1982 तक की कविताओं का संकलन है। इस कविता संग्रह को इसके प्रकाशित वर्ष...