Tag: Kunwar Narayan

Kunwar Narayan

पवित्रता

कुछ शब्द हैं जो अपमानित होने पर स्वयं ही जीवन और भाषा से बाहर चले जाते हैं 'पवित्रता' ऐसा ही एक शब्द है जो अब व्यवहार में नहीं, उसकी...
Kunwar Narayan

किसी पवित्र इच्छा की घड़ी में

व्यक्ति को विकार की ही तरह पढ़ना जीवन का अशुद्ध पाठ है। वह एक नाज़ुक स्पन्द है समाज की नसों में बन्द जिसे हम किसी अच्छे विचार या पवित्र इच्छा...
Kunwar Narayan

सम्भावनाएँ

लगभग मान ही चुका था मैं मृत्यु के अंतिम तर्क को कि तुम आए और कुछ इस तरह रखा फैलाकर जीवन के जादू का भोला-सा इन्द्रजाल कि लगा यह प्रस्ताव ज़रूर सफल...
Kunwar Narayan

दुनिया को बड़ा रखने की कोशिश

असलियत यही है कहते हुए जब भी मैंने मरना चाहा ज़िन्दगी ने मुझे रोका है। असलियत यही है कहते हुए जब भी मैंने जीना चाहा ज़िन्दगी ने मुझे निराश...
Kunwar Narayan

अबकी अगर लौटा तो

अबकी अगर लौटा तो बृहत्तर लौटूँगा चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं कमर में बाँधे लोहे की पूँछें नहीं जगह दूँगा साथ चल रहे लोगों को तरेरकर न देखूँगा...
Kunwar Narayan

मामूली ज़िन्दगी जीते हुए

जानता हूँ कि मैं दुनिया को बदल नहीं सकता, न लड़कर उससे जीत ही सकता हूँ हाँ लड़ते-लड़ते शहीद हो सकता हूँ और उससे आगे एक शहीद का मक़बरा या एक...
Tadeusz Rozewicz

तादेऊष रूज़ेविच की कविता ‘ज़िन्दा बच गया’

'जीवन के बीचोंबीच' : तादेऊष रूज़ेविच की कविताएँ से अनुवाद: आग्नयेष्का कूच्क्येवीच-फ़्राश और कुँवर नारायण मैं चौबीस का हूँ मेरा वध होना था बच गया। खोखले हैं ये सारे...
Kunwar Narayan

ये शब्द वही हैं

यह जगह वही है जहाँ कभी मैंने जन्म लिया होगा इस जन्म से पहले यह मौसम वही है जिसमें कभी मैंने प्यार किया होगा इस प्यार से पहले यह समय...
kunwar narayan

प्रस्थान के बाद

दीवार पर टंगी घड़ी कहती— "उठो अब वक़्त आ गया।" कोने में खड़ी छड़ी कहती— "चलो अब, बहुत दूर जाना है।" पैताने रखे जूते पाँव छूते— "पहन लो हमें,...
kunwar narayan

बात सीधी थी पर

बात सीधी थी पर एक बार भाषा के चक्कर में ज़रा टेढ़ी फँस गई। उसे पाने की कोशिश में भाषा को उलटा-पलटा तोड़ा-मरोड़ा घुमाया-फिराया कि बात या तो बने या फिर भाषा...
Kunwar Narayan

प्यार की भाषाएँ

'Pyar Ki Bhashaein', a poem by Kunwar Narayan मैंने कई भाषाओं में प्यार किया है पहला प्यार ममत्व की तुतलाती मातृभाषा में, कुछ ही वर्ष रही वह जीवन में दूसरा...
Kunwar Narayan

मैं कहीं और भी होता हूँ

'Main Kahin Aur Bhi Hota Hoon', a poem by Kunwar Narayan मैं कहीं और भी होता हूँ जब कविता लिखता कुछ भी करते हुए कहीं और भी होना धीरे-धीरे...
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