Tag: Kunwar Narayan
पवित्रता
कुछ शब्द हैं जो अपमानित होने पर
स्वयं ही जीवन और भाषा से
बाहर चले जाते हैं
'पवित्रता' ऐसा ही एक शब्द है
जो अब व्यवहार में नहीं,
उसकी...
किसी पवित्र इच्छा की घड़ी में
व्यक्ति को
विकार की ही तरह पढ़ना
जीवन का अशुद्ध पाठ है।
वह एक नाज़ुक स्पन्द है
समाज की नसों में बन्द
जिसे हम किसी अच्छे विचार
या पवित्र इच्छा...
सम्भावनाएँ
लगभग मान ही चुका था मैं
मृत्यु के अंतिम तर्क को
कि तुम आए
और कुछ इस तरह रखा
फैलाकर
जीवन के जादू का
भोला-सा इन्द्रजाल
कि लगा यह प्रस्ताव
ज़रूर सफल...
दुनिया को बड़ा रखने की कोशिश
असलियत यही है कहते हुए
जब भी मैंने मरना चाहा
ज़िन्दगी ने मुझे रोका है।
असलियत यही है कहते हुए
जब भी मैंने जीना चाहा
ज़िन्दगी ने मुझे निराश...
अबकी अगर लौटा तो
अबकी अगर लौटा तो
बृहत्तर लौटूँगा
चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं
कमर में बाँधे लोहे की पूँछें नहीं
जगह दूँगा साथ चल रहे लोगों को
तरेरकर न देखूँगा...
मामूली ज़िन्दगी जीते हुए
जानता हूँ कि मैं
दुनिया को बदल नहीं सकता,
न लड़कर
उससे जीत ही सकता हूँ
हाँ लड़ते-लड़ते शहीद हो सकता हूँ
और उससे आगे
एक शहीद का मक़बरा
या एक...
तादेऊष रूज़ेविच की कविता ‘ज़िन्दा बच गया’
'जीवन के बीचोंबीच' : तादेऊष रूज़ेविच की कविताएँ से
अनुवाद: आग्नयेष्का कूच्क्येवीच-फ़्राश और कुँवर नारायण
मैं चौबीस का हूँ
मेरा वध होना था
बच गया।
खोखले हैं ये सारे...
ये शब्द वही हैं
यह जगह वही है
जहाँ कभी मैंने जन्म लिया होगा
इस जन्म से पहले
यह मौसम वही है
जिसमें कभी मैंने प्यार किया होगा
इस प्यार से पहले
यह समय...
प्रस्थान के बाद
दीवार पर टंगी घड़ी
कहती— "उठो अब वक़्त आ गया।"
कोने में खड़ी छड़ी
कहती— "चलो अब, बहुत दूर जाना है।"
पैताने रखे जूते पाँव छूते—
"पहन लो हमें,...
बात सीधी थी पर
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा-पलटा
तोड़ा-मरोड़ा
घुमाया-फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा...
प्यार की भाषाएँ
'Pyar Ki Bhashaein', a poem by Kunwar Narayan
मैंने कई भाषाओं में प्यार किया है
पहला प्यार
ममत्व की तुतलाती मातृभाषा में,
कुछ ही वर्ष रही वह जीवन में
दूसरा...
मैं कहीं और भी होता हूँ
'Main Kahin Aur Bhi Hota Hoon', a poem by Kunwar Narayan
मैं कहीं और भी होता हूँ
जब कविता लिखता
कुछ भी करते हुए
कहीं और भी होना
धीरे-धीरे...