Tag: Lakhan Singh
केदार डायरी
रेगिस्तान की तरह सूखा हूँ
समुन्द्र-सा अकेला और
पहाड़ों की तरह उदास
मैं ही तो हूँ
क्या ही हूँ मैं।तीर्थयात्राएँ पवित्र करती हैं शरीर और मन, कैथार्सिस (catharsis)...
लाखन सिंह की कविताएँ
1
जीना किसी सड़ी लाश को खाने जैसा
हो गया है,
हर एक साँस के साथ
निगलता हूँ उलझी हुई अंतड़ियाँ,
इंद्रियों से चिपटा हुआ अपराधबोध
घिसटता है
माँस के लोथड़े...