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सुना है कभी तुमने रंगों को
कभी-कभी
उजाले का आभास
अंधेरे के इतने क़रीब होता है
कि दोनों को अलग-अलग
पहचान पाना मुश्किल हो जाता है।
धीरे-धीरे
जब उजाला
खेलने-खिलने लगता है
और अंधेरा उसकी जुम्बिश से
परदे की...
राहुल तोमर की कविताएँ
प्रतीक्षा
उसकी पसीजी हथेली स्थिर है
उसकी उँगलियाँ किसी
बेआवाज़ धुन पर थिरक रही हैं
उसका निचला होंठ
दाँतों के बीच नींद का स्वाँग भर
जागने को विकल लेटा हुआ...
अन्धेरे के बारे में कुछ वाक्य
अन्धेरे में सबसे बड़ी दिक़्क़त यह थी कि वह किताब पढ़ना
नामुमकिन बना देता था।
पता नहीं शरारतन ऐसा करता था या किताब से डरता था
उसके मन...
निर्विकल्प
इसने नारे की हवाई छोड़ी
उसने भाषण की चर्खी
तीसरे ने योजना की महताब
चौथे ने सेमिनार का अनार
पाँचवें ने बहस के पटाखों की लड़ी
छठे ने प्रदर्शन की...
उजली परछाईं
सच के उजाले में
झूठ की परछाईं
लम्बी हो जाती है
दीवारों पर बनती आकृति
दरारों मे मुँह छुपाती है
छत पर लटक जाती है
फ़र्श पर पैरों से लिपट...
बात और जज़्बात
1
हर तारा
यही कहता है
काली रात से
कि थमी रहो
चमकना है
कुछ देर अभी और...!
2
हर रोज़ सवेरे मैं उजालों को
पहन लेता हूँ और निखार लेता हूँ खुद...