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‘अब्बास : व्यक्तित्व और कला’ — ख़्वाजा अहमद अब्बास से कृश्न चन्दर की बातचीत
ख़्वाजा अहमद अब्बास से कृश्न चन्दर की बातचीत
'मुझे कुछ कहना है' से साभार
कृश्न—अपनी जन्म-तिथि याद है? मेरा मतलब साहित्यिक जन्म-तिथि से है।
अब्बास—यों तो मैं...
साहित्य की सामग्री
राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित 'साहित्य विधाओं की प्रकृति' से
अनुवाद : वंशीधर विद्यालंकार
केवल अपने लिए लिखने को साहित्य नहीं कहते हैं—जैसे पक्षी अपने आनंद के...
जनता का साहित्य किसे कहते हैं?
ज़िन्दगी के दौरान जो तजुर्बे हासिल होते हैं, उनसे नसीहतें लेने का सबक़ तो हमारे यहाँ सैकड़ों बार पढ़ाया गया है। होशियार और बेवक़ूफ़...
साहित्य
एक दिन चुपचाप,
अपने आप
यानी बिन बुलाए,
तुम चले आए;
मुझे ऐसा लगा
जैसे जगा था रात भर
इसकी प्रतीक्षा में;
कि दोनों हाथ फैलाकर
तुम्हें उल्लास से खींचा;
सबेरे की किरन...