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Gaurav Bharti

कविताएँ: नवम्बर 2021

यात्री भ्रम कितना ख़ूबसूरत हो सकता है? इसका एक ही जवाब है मेरे पास कि तुम्हारे होने के भ्रम ने मुझे ज़िन्दा रखा तुम्हारे होने के भ्रम में मैंने शहर...
Pranjal Rai

विदा ले चुके अतिथि की स्मृति

मैं विदा ले चुका अतिथि (?) हूँ अब मेरी तिथि अज्ञात नहीं, विस्मृत है। मेरे असमय प्रस्थान की ध्वनि अब भी करती है कोहरे के कान में...
Javed Akhtar, Shabana Azmi

बंजारा

मैं बंजारा वक़्त के कितने शहरों से गुज़रा हूँ लेकिन वक़्त के इस इक शहर से जाते-जाते मुड़ के देख रहा हूँ सोच रहा हूँ तुमसे मेरा ये नाता...
Ahmad Faraz

मुझसे पहले

मुझसे पहले तुझे जिस शख़्स ने चाहा, उसने शायद अब भी तेरा ग़म दिल से लगा रक्खा हो एक बेनाम-सी उम्मीद पे अब भी शायद अपने ख़्वाबों के...
Harivansh Rai Bachchan

गरमी में प्रातःकाल

मिलन यामिनी से  गरमी में प्रातःकाल पवन बेला से खेला करता जब तब याद तुम्‍हारी आती है। जब मन से लाखों बार गया- आया सुख सपनों का मेला, जब मैंने घोर...
Parveen Shakir

चाँद-रात

गए बरस की ईद का दिन क्या अच्छा था चाँद को देखके उसका चेहरा देखा था फ़ज़ा में 'कीट्स' के लहजे की नरमाहट थी मौसम अपने रंग...
Rajkamal Chaudhary

अनायास

फिर भी कभी चला जाऊँगा उसी दरवाज़े तक अनायास जैसे, उस अँधियारे गलियारे में कोई अब तक रहता हो। फिर भी, दीवार की कील पर अटका...
Parveen Shakir

इतना मालूम है

अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम-दराज़ सोचती थी कि वो इस वक़्त कहाँ पर होगा मैं यहाँ हूँ मगर उस कूचा-ए-रंग-ओ-बू में रोज़ की तरह...
Amrita Pritam

तू नहीं आया

चैत ने करवट ली, रंगों के मेले के लिए फूलों ने रेशम बटोरा—तू नहीं आया दोपहरें लम्बी हो गईं, दाखों को लाली छू गई दराँती ने गेहूँ...
Amir Khusrow

बहुत दिन बीते पिया को देखे

बहुत दिन बीते पिया को देखे, अरे कोई जाओ, पिया को बुलाय लाओ मैं हारी, वो जीते, पिया को देखे बहुत दिन बीते। सब चुनरिन में चुनर...

तोहफ़ा

मैंने उन्हें कई तोहफे दिए। हमारे साथ के चार सालों में ऐसे बहुत मौक़े आते कि मुझे उन्हें तोहफे देने की ज़िद पकड़नी पड़ती लेकिन ऐसा...
Subhadra Kumari Chauhan

हे काले-काले बादल

यह कैसा दुःख कि आँखें बादलों से होड़ लगाने पर तुली हैं!! "हे काले-काले बादल, ठहरो, तुम बरस न जाना। मेरी दुखिया आँखों से, देखो मत होड़ लगाना॥"
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