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कविताएँ: नवम्बर 2021
यात्री
भ्रम कितना ख़ूबसूरत हो सकता है?
इसका एक ही जवाब है मेरे पास
कि तुम्हारे होने के भ्रम ने
मुझे ज़िन्दा रखा
तुम्हारे होने के भ्रम में
मैंने शहर...
विदा ले चुके अतिथि की स्मृति
मैं विदा ले चुका अतिथि (?) हूँ
अब मेरी तिथि अज्ञात नहीं, विस्मृत है।
मेरे असमय प्रस्थान की ध्वनि
अब भी करती है कोहरे के कान में...
बंजारा
मैं बंजारा
वक़्त के कितने शहरों से गुज़रा हूँ
लेकिन
वक़्त के इस इक शहर से जाते-जाते मुड़ के देख रहा हूँ
सोच रहा हूँ
तुमसे मेरा ये नाता...
मुझसे पहले
मुझसे पहले तुझे जिस शख़्स ने चाहा, उसने
शायद अब भी तेरा ग़म दिल से लगा रक्खा हो
एक बेनाम-सी उम्मीद पे अब भी शायद
अपने ख़्वाबों के...
गरमी में प्रातःकाल
मिलन यामिनी से
गरमी में प्रातःकाल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
जब मन से लाखों बार गया-
आया सुख सपनों का मेला,
जब मैंने घोर...
चाँद-रात
गए बरस की ईद का दिन क्या अच्छा था
चाँद को देखके उसका चेहरा देखा था
फ़ज़ा में 'कीट्स' के लहजे की नरमाहट थी
मौसम अपने रंग...
अनायास
फिर भी कभी चला जाऊँगा उसी दरवाज़े तक अनायास जैसे,
उस अँधियारे गलियारे में कोई अब तक रहता हो।
फिर भी, दीवार की कील पर अटका...
इतना मालूम है
अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम-दराज़
सोचती थी कि वो इस वक़्त कहाँ पर होगा
मैं यहाँ हूँ मगर उस कूचा-ए-रंग-ओ-बू में
रोज़ की तरह...
तू नहीं आया
चैत ने करवट ली, रंगों के मेले के लिए
फूलों ने रेशम बटोरा—तू नहीं आया
दोपहरें लम्बी हो गईं, दाखों को लाली छू गई
दराँती ने गेहूँ...
बहुत दिन बीते पिया को देखे
बहुत दिन बीते पिया को देखे,
अरे कोई जाओ, पिया को बुलाय लाओ
मैं हारी, वो जीते, पिया को देखे बहुत दिन बीते।
सब चुनरिन में चुनर...
तोहफ़ा
मैंने उन्हें कई तोहफे दिए। हमारे साथ के चार सालों में ऐसे बहुत मौक़े आते कि मुझे उन्हें तोहफे देने की ज़िद पकड़नी पड़ती लेकिन ऐसा...
हे काले-काले बादल
यह कैसा दुःख कि आँखें बादलों से होड़ लगाने पर तुली हैं!!
"हे काले-काले बादल, ठहरो, तुम बरस न जाना।
मेरी दुखिया आँखों से, देखो मत होड़ लगाना॥"