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धर्मवीर भारती – ‘गुनाहों का देवता’
धर्मवीर भारती के उपन्यास 'गुनाहों का देवता' से उद्धरण | Quotes from 'Gunahon Ka Devta', a novel by Dharmvir Bharti
"सचमुच लगता है कि प्रयाग...
सुखमय जीवन
"उसको देखते ही मेरे हृदय में प्रेम की अग्नि जल उठी थी और दिन-भर वहाँ रहने से वह धधकने लग गई थी। दो ही पहर में मैं बालक से युवा हो गया था। अंगरेजी महाकाव्यों में, प्रेममय उपन्यासों में और कोर्स के संस्कृत-नाटकों में जहाँ-जहाँ प्रेमिका-प्रेमिक का वार्तालाप पढ़ा था, वहाँ-वहाँ का दृश्य स्मरण करके वहाँ-वहाँ के वाक्यों को घोख रहा था, पर यह निश्चय नहीं कर सका कि इतने थोड़े परिचय पर भी बात कैसी करनी चाहिए। अंत में अंगरेजी पढ़नेवाले की धृष्टता ने आर्यकुमार की शालीनता पर विजय पाई और चपलता कहिए, बेसमझी कहिए, ढीठपन कहिए, पागलपन कहिए, मैंने दौड़ कर कमला का हाथ पकड़ लिया।"
बादशाहत का ख़ात्मा
एक दिन वो बड़ा टेढ़ा सवाल कर बैठी, “मोहन तुम ने कभी किसी लड़की से मोहब्बत की है?”मनमोहन ने जवाब दिया, “नहीं”“क्यों?”मोहन एक दम उदास हो गया, “इस क्यों का जवाब चंद लफ़्ज़ों में नहीं दे सकता। मुझे अपनी ज़िंदगी का सारा मलबा उठाना पड़ेगा... अगर कोई जवाब न मिले तो बड़ी कोफ़्त होगी।”
मिलन
"मुझे तो पानी से प्रेम हो गया है। किसी दिन जब जोर का मेघ बरसेगा तब झरने के नीचे खड़ी हो जाऊँगी; आकाश का पानी, झरने का पानी और नदी का पानी, हर ओर पानी। फिर इतना पानी पी लूँगी कि मैं भी गल कर पानी हो जाऊँगी।"