Tag: Melancholy
लाखन सिंह की कविताएँ
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जीना किसी सड़ी लाश को खाने जैसा
हो गया है,
हर एक साँस के साथ
निगलता हूँ उलझी हुई अंतड़ियाँ,
इंद्रियों से चिपटा हुआ अपराधबोध
घिसटता है
माँस के लोथड़े...
आषाढ़ की भरी दोपहरी में लिखी एक उदास कविता
दर्द याद रहता है
ख़ुशी गुम हो जाती है
दंश विस्मृत नहीं होता
स्पर्श में से बचा रह जाता है
उतना हिस्सा
जो रह जाता है उँगलियों पर चिपककर।
भूख...
हताशा का अरण्य
हताशा का अरण्य बहुत ही घना होता है
वहाँ का हर पेड़ एक-सी शक्ल का लगता है
कोई अगर अलग दिखता है तो वह हम ख़ुद।
उस...