Tag: Metered Poetry

Meena Kumari

चाँद तन्हा है, आसमाँ तन्हा

चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा बुझ गई आस, छुप गया तारा थरथराता रहा धुआँ तन्हा ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं जिस्म तन्हा है...
Kailash Gautam

कल से डोरे डाल रहा है

कल से डोरे डाल रहा है फागुन बीच सिवान में, रहना मुश्किल हो जाएगा प्यारे बंद मकान में। भीतर से खिड़कियाँ खुलेंगी बौर आम के महकेंगे, आँच पलाशों पर आएगी सुलगेंगे...
Kedarnath Agarwal

हमारी ज़िन्दगी

हमारी ज़िन्दगी के दिन, बड़े संघर्ष के दिन हैं। हमेशा काम करते हैं, मगर कम दाम मिलते हैं। प्रतिक्षण हम बुरे शासन, बुरे शोषण से पिसते हैं। अपढ़, अज्ञान, अधिकारों से वंचित...
Bhawani Prasad Mishra

तोड़ने से कुछ बड़ा है

बनाना तोड़ने से कुछ बड़ा है हमारे मन को हम ऐसा सिखाएँ गढ़न के रूप की झाँकी सरस है वही झाँकी जगत को हम दिखाएँ बखेरें बीज ज़्यादा...
Nasir Kazmi

अपनी धुन में रहता हूँ

अपनी धुन में रहता हूँ मैं भी तेरे जैसा हूँ ओ पिछली रुत के साथी अबके बरस मैं तन्हा हूँ तेरी गली में सारा दिन दुःख के कंकर चुनता...
Ahmad Faraz

ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें

ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें साक़िया साक़िया सम्भाल हमें रो रहे हैं कि एक आदत है वर्ना इतना नहीं मलाल हमें ख़ल्वती हैं तेरे जमाल के हम आइने...
Parveen Shakir

पूरा दुःख और आधा चाँद

पूरा दुःख और आधा चाँद हिज्र की शब और ऐसा चाँद दिन में वहशत बहल गई रात हुई और निकला चाँद किस मक़्तल से गुज़रा होगा इतना सहमा-सहमा चाँद यादों...
Mukut Bihari Saroj

सचमुच बहुत देर तक सोए

सचमुच बहुत देर तक सोए! इधर यहाँ से उधर वहाँ तक धूप चढ़ गई कहाँ-कहाँ तक लोगों ने सींची फुलवारी तुमने अब तक बीज न बोए! सचमुच बहुत देर...
Harivansh Rai Bachchan

गरमी में प्रातःकाल

मिलन यामिनी से  गरमी में प्रातःकाल पवन बेला से खेला करता जब तब याद तुम्‍हारी आती है। जब मन से लाखों बार गया- आया सुख सपनों का मेला, जब मैंने घोर...
Girish Chandra Tiwari Girda

ऐसा हो स्कूल हमारा

जहाँ न बस्ता कंधा तोड़े जहाँ न पटरी माथा फोड़े जहाँ न अक्षर कान उखाड़ें जहाँ न भाषा ज़ख़्म उभारे ऐसा हो स्कूल हमारा! जहाँ अंक सच-सच बतलाएँ जहाँ प्रश्न हल...
Krishna Bihari Noor

ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं

ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं और क्या जुर्म है, पता ही नहीं इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं ज़िन्दगी,...
Aarsi Prasad Singh

बैलगाड़ी

जा रही है गाँव की कच्ची सड़क से लड़खड़ाती बैलगाड़ी! एक बदक़िस्मत डगर से, दूर, वैभवमय नगर से, एक ही रफ़्तार धीमी, एक ही निर्जीव स्वर से, लादकर आलस्य, जड़ता...
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