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त्रस्त एकान्त
स्थानान्तरण से त्रस्त एकान्त
खोजता है निश्चित ठौर
भीतर का कुछ
निकल भागना चाहता
नियत भार उठाने वाले कंधों
और निश्चित दूरी नापने वाले
लम्बे क़दमों को छोड़
दिन के हर...
जॉन गुज़लॉवस्की की कविता ‘मेरे लोग’
जॉन गुज़लॉवस्की (John Guzlowski) नाज़ी यातना कैम्प में मिले माता-पिता की संतान हैं। उनका जन्म जर्मनी के एक विस्थापित कैम्प में हुआ। उनके माता-पिता...
सड़क की छाती पर कोलतार
सड़क की छाती पर कोलतार बिछा हुआ है। उस पर मज़दूरों के जत्थे की पदचाप है। इस दृश्य के उस पार उनके दुख-दर्द हैं।...
एक मौसम को लिखते समय
मैं सही शब्दों की तलाश करूँगा
लिखूँगा एक मौसम,
एक सत्य कहने में
दुःख का वृक्ष भी सूख जाता है
घर जाने वाली सभी रेल
विलम्ब से चल रही...
कुछ जोड़ी चप्पलें, इमाम दस्ता
कुछ जोड़ी चप्पलें
उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता कि
मनुष्य होने के दावे कितने झूठे पड़ चुके थे
तुम्हारी आत्म संलिप्त दानशीलता के बावजूद,
थोड़ा-सा भूगोल लिए आँखों में
वे बस...
गाँव को विदा कह देना आसान नहीं है
मेरे गाँव! जा रहा हूँ दूर-दिसावर
छाले से उपने थोथे धान की तरह
तेरी गोद में सिर रख नहीं रोऊँगा
जैसे नहीं रोए थे दादा
दादी के गहने गिरवी...
उनके तलुओं में दुनिया का मानचित्र है
1
वे हमारे सामने थे और पीछे भी
दाएँ थे और बाएँ भी
वे हमारे हर तरफ़ थे
बेहद मामूली कामों में लगे हुए बेहद मामूली लोग
जो अपने...
मैं गाँव गया था
मैं अभी गाँव गया था
केवल यह देखने
कि घर वाले बदल गए हैं
या
अभी तक यह सोचते हैं
कि मैं बड़ा आदमी बनकर लौटूँगा।
रास्ते में सागौन पीले...
पैदल चलते लोग
तमाम दृश्यों को हटाता, घसीटता और ठोकर मारता हुआ
चारों तरफ़ एक ही दृश्य है
बस एक ही आवाज़
जो पैरों के उठने और गिरने की हुआ करती...
लौटना, थपकियाँ, देखना
लौटना
खण्डित आस्थाएँ लिए
महामारी के इस दुर्दिन में
हज़ारों बेबस, लाचार मज़दूर
सभी दिशाओं से
लौट रहे हैं
अपने-अपने घर
उसने नहीं सोचा था
लौटना होगा कुछ यूँ
कि वह लौटने जैसा नहीं...
प्रवासी मज़दूर
मैंने कब माँगा था तुमसे
आकाश का बादल
धरती का कोना
सागर की लहर
हवा का झोंका
सिंहासन की धूल
पुरखों की राख
या अपने बच्चे के लिए दूध
यह सब वर्जित...
राहुल बोयल की कविताएँ
1
एक देवी की प्रतिमा है - निर्वसन
पहन लिया है मास्क मुख पर
जबकि बग़ल में पड़ा है बुरखा
देवताओं ने अवसान की घड़ी में भी
जारी रखी...