Tag: माँ
‘अन्तस की खुरचन’ से कविताएँ
यतीश कुमार की कविताओं को मैंने पढ़ा। अच्छी रचना से मुझे सार्वजनिकता मिलती है। मैं कुछ और सार्वजनिक हुआ, कुछ और बाहर हुआ, कुछ...
ऐड्रियाटिक जेस की कविताएँ
एड्रिआटिक जेस विश्व पटल पर उभरते युवा अल्बेनियन कवि और ब्लॉगर हैं। उनका जन्म परमेट अल्बानिया में 1971 में हुआ, जहाँ अपनी स्कूली शिक्षा...
पलंग
उस साल जब पलाश की नंगी छितरी शाखों पर पहला फूल खिला, तब माँ पूरी तरह स्वस्थ थी। जब पूरा पेड़ दहकता जंगल बन...
माँ
"रात होते ही ख़ूँख़ार जानवर घूमने लगते थे। फिर भी उस क्रूर माँ ने बच्चे के पूरी रोटी के लिए ज़िद करने पर उसे आँगन...
माँ का नमस्कार
जब माँ की काफ़ी उम्र हो गई
तो वह सभी मेहमानों को नमस्कार किया करती
जैसे वह एक बच्ची हो और बाक़ी लोग उससे बड़े।
वह हरेक...
कविताएँ: दिसम्बर 2020
1
हॉस्टल के अधिकांश कमरों के बाहर
लटके हुए हैं ताले
लटकते हुए इन तालों में
मैं आने वाला समय देख रहा हूँ
मैं देख रहा हूँ
कमरों के भीतर
अनियन्त्रित...
माँ ने जन्म दिया
मैं अदना-सा आदमी
मैंने पाया, इतना प्यार
मैंने माँ की कथरी ओढ़कर
ठण्ड के हिमालयों को
झींगुर या कीड़ों की तरह रेंगते देखा
सूपे की हवा ने उतार दिया
गर्मियों...
प्रश्न
एक लड़का भाग रहा है। उसके तन पर केवल एक कुर्ता है और एक धोती मैली-सी! वह गली में भाग रहा है मानो हज़ारों...
तुम्हारे पाँव
तुम ढूँढ लेती थीं जाने कैसे
हर छोटी-छोटी चीज़ में ख़ुशी,
उदासियों को बंद कर दिया था तुमने
अपनी रसोई में माचिस के एक डिब्बे में
और जलाते हुए...
बिचौलियों के बीज
'लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ' से
माँ!
मेरा बचपन तो
तुम्हारी पीठ पर बँधे बीता—
जब तुम घास का भारी बोझ
सिर पर रखकर
शहर को जाती थीं।
जब भी आँखें खोलता
घास की...
माँ के हिस्से की आधी नींद
माँ भोर में उठती है
कि माँ के उठने से भोर होती है
ये हम कभी नहीं जान पाए
बरामदे के घोंसले में
बच्चों संग चहचहाती गौरैया
माँ को...
सुई और तागे के बीच में
माँ मेरे अकेलेपन के बारे में सोच रही है
पानी गिर नहीं रहा
पर गिर सकता है किसी भी समय
मुझे बाहर जाना है
और माँ चुप है...