Tag: माँ
माँ और मैं
मैंने अपनी माँ में कोई ऐसी महान चीज़ नहीं देखी
जो माँओं में देखी जाती है
या जिसकी महिमा गायी जाती है, पूजा की जाती है
ज़ाहिर है, मैं...
माँ
चूल्हे में ढकेलती अपने हाथों से आग
माँ हमेशा दुःखों को
ऐसे ही जलाना जानती थी
अपने माथे सजाती थी बड़ा-सा कुमकुम
और अपने साड़ी के कोने से
उसे...
माँ की तस्वीर
घर में माँ की कोई तस्वीर नहीं
जब भी तस्वीर खिंचवाने का मौक़ा आता है
माँ घर में खोयी हुई किसी चीज़ को ढूँढ रही होती है
या...
माँ पर नहीं लिख सकता कविता
माँ के लिए सम्भव नहीं होगी मुझसे कविता
अमर चिऊँटियों का एक दस्ता
मेरे मस्तिष्क में रेंगता रहता है
माँ वहाँ हर रोज़ चुटकी-दो-चुटकी आटा डाल देती...
माँ जब खाना परोसती थी
वे दिन बहुत दूर हो गए हैं
जब माँ के बिना परसे पेट भरता ही नहीं था,
वे दिन अथाह कुएँ में छूटकर गिरी
पीतल की चमकदार...
माँ कहती है
हम हर रात
पैर धोकर सोते हैं
करवट होकर।
छाती पर हाथ बाँधकर
चित्त
हम कभी नहीं सोते।
सोने से पहले
माँ
टुइयाँ के तकिये के नीचे
सरौता रख देती है
बिना नागा।
माँ कहती...
माँ
वह दरवाज़े पर है
उस पार से बहुत बड़ी दुनिया
पार कर के दस्तक
जब दरवाज़े पर होगी
तब के लिए वह रात-भर
दरवाज़े पर है।
वह एक भूली हुई...
माँ
बुलाने के लिए कई नाम हैं
जिसे पुकारो बोलता भी है
पर एक नाम ऐसा है जिसे पुकारो तो
सब चौकन्ने हो जाते हैं
सभी सोचते हैं ये...
अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो
मेरी बिटिया
तुझे भी मैंने जन्मा था उसी दुःख से
कि जिस दुःख से तेरे भाई को जन्मा
तुझे भी मैंने अपने तन से वाबस्ता रखा
उतनी ही मुद्दत...
शहर से गुज़रते हुए प्रेम, कविता पढ़ना, बेबसी
शहर से गुज़रते हुए प्रेम
मैं जब-जब शहर से गुज़रता हूँ
सोचता हूँ
किसने बसाए होंगे शहर?
शायद गाँवों से भागे
प्रेमियों ने शहर बसाए होंगे
ये वो अभागे थे,
जो फिर लौटना...
माँ : छह कविताएँ
1
उसने बुना था पृथ्वी को
तरह-तरह की ऋतुओं से
मेरे लिए
मखमली हरी घास बिछायी थी
इन्द्रधनुष खिलाए थे
उसे मालूम था
मुझे सींचने वाले बहुत लोग नहीं हैं
इसलिए उसने...
माँ
बच्चों पे चली गोली
माँ देख के ये बोली—
ये दिल के मेरे टुकड़े
यूँ रोएँ मेरे होते
मैं दूर खड़ी देखूँ
ये मुझसे नहीं होगा
मैं दूर खड़ी देखूँ
और अहल-ए-सितम खेलें
ख़ूँ...