Tag: Neera Parmar
पुनरावर्तन
कहीं कोई पत्ता भी नहीं खड़केगा
हर बार की तरह ऐसे ही सुलगते पलाश
रक्त की चादर ओढ़े
चीलों और गिद्धों को खींच ले आएँगे
घेरकर मारे जाने...
अन्तर्सज्जा
बहुत देख लिया
नून-तेल, आटा-दाल
बटलोई-कड़छुलवाली
रसोईघर की खिड़की से
बादल का छूटता
कोना
यह सोफ़ा कुर्सियाँ मेज़ पलंग फूलदान
उधर धर दो
कैलेण्डर में सुबह-शाम बंधे
गलियारे में पूरब-पश्चिम क़ैद
उस कोने में वह...
समानान्तर इतिहास
इतिहास
राजपथ का होता है
पगडण्डियों का नहीं!
सभ्यताएँ
बनती हैं इतिहास
और सभ्य
इतिहास पुरुष!
समय उन बेनाम
क़दमों का क़ायल नहीं
जो अनजान
दर्रों जंगलों कछारों पर
पगडण्डियों की आदिम लिपि—
रचते हैं
ये कीचड़-सने कंकड़-पत्थर...
औरत का क़द
तब नींव के कान खड़े हो जाते हैं
किसी हादसे की धमक से,
मिट्टी की गहराइयों में दूर तक
काँप-करक जाती है धरती,
जब
किसी औरत का क़द
पीपल-सा
घर की...
दख़ल
कोई उस औरत को बतलाए
आख़िर क्यों दे रही है वह किसी को
अपनी ज़िन्दगी से जुड़े सवालों के जवाब?
आख़िर कब बन्द होगी
दीवार में ठुकती कील-सी
प्रश्नों की ठक-ठक
क्यों आँखें खुलते...
वैतरणी
मंगतू अपनी बस्ती में एक नल लगाने का आग्रह अपने क्षेत्र के विधायक से करता है, लेकिन उसकी इस फ़रियाद के पूर्ण होने के रास्ते में रुकावट हैं वैतरणी के तट पर खड़े विधायक के स्वर्गीय बड़े भैया!