Tag: Nirmala Putul
आख़िर कहें तो किससे कहें
वे कौन लोग थे सिद्धो-कान्हू
जो अँधेरे में सियार की तरह आए
और उठा ले गए तुम्हारे हाथों से तीर-धनुष
तुम्हारी मूर्ति तोड़ी वे कौन लोग थे,
तुम...
बाहामुनी
तुम्हारे हाथों बने पत्तल पर भरते हैं पेट हज़ारों
पर हज़ारों पत्तल भर नहीं पाते तुम्हारा पेट
कैसी विडम्बना है कि
ज़मीन पर बैठ बुनती हो चटाइयाँ
और...
अगर तुम मेरी जगह होते
ज़रा सोचो, कि
तुम मेरी जगह होते
और मैं तुम्हारी
तो, कैसा लगता तुम्हें?
कैसा लगता
अगर उस सुदूर पहाड़ की तलहटी में
होता तुम्हारा गाँव
और रह रहे होते तुम
घास-फूस...
कुछ भी तो बचा नहीं सके तुम
तुम्हारे पास थोड़ा-सा वक़्त है...
अगर नहीं तो निकालो थोड़ी फ़ुर्सत
याद करो अपने उन तमाम पत्रों को
जिससे बहुत कुछ बचाने की बात करते रहे हो...
तुम्हें आपत्ति है
यह कविता यहाँ सुनें:
https://youtu.be/E_BL2EGWzZc
तुम कहते हो
मेरी सोच ग़लत है
चीज़ों और मुद्दों को
देखने का नज़रिया ठीक नहीं है मेरा
आपत्ति है तुम्हें
मेरे विरोध जताने के तरीक़े पर
तुम्हारा...
वह जो अक्सर तुम्हारी पकड़ से छूट जाता है
एक स्त्री पहाड़ पर रो रही है
और दूसरी स्त्री
महल की तिमंज़िली इमारत की खिड़की से बाहर
झाँककर मुस्कुरा रही है
ओ, कविगोष्ठी में स्त्रियों पर
कविता पढ़ रहे...
अपनी ज़मीन तलाशती बेचैन स्त्री
यह कैसी विडम्बना है
कि हम सहज अभ्यस्त हैं
एक मानक पुरुष-दृष्टि से देखने
स्वयं की दुनिया
मैं स्वयं को स्वयं की दृष्टि से देखते
मुक्त होना चाहती हूँ...
क्या तुम जानते हो
क्या तुम जानते हो
पुरुष से भिन्न
एक स्त्री का एकान्त?
घर-प्रेम और जाति से अलग
एक स्त्री को उसकी अपनी ज़मीन
के बारे में बता सकते हो तुम?
बता...
क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए
क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए?
एक तकिया
कि कहीं से थका-मांदा आया और सिर टिका दिया
कोई खूँटी
कि ऊब, उदासी, थकान से भरी कमीज़ उतारकर टाँग दी
या...
उतनी दूर मत ब्याहना बाबा
बाबा!
मुझे उतनी दूर मत ब्याहना
जहाँ मुझसे मिलने जाने की ख़ातिर
घर की बकरियाँ बेचनी पड़ें तुम्हें
मत ब्याहना उस देश में
जहाँ आदमी से ज़्यादा
ईश्वर बसते हों
जंगल नदी...
आदिवासी लड़कियों के बारे में
ऊपर से काली
भीतर से अपने चमकते दाँतों
की तरह शान्त धवल होती हैं वे
वे जब हँसती हैं फेनिल दूध-सी
निश्छल हँसी
तब झर-झराकर झरते हैं
पहाड़ की कोख...