Tag: Oppression
आशिका शिवांगी सिंह की कविताएँ
माँ-पिता प्रेमी-प्रेमिका नहीं बन सके
मेरी माँ जब भी कहती है—
"प्रेम विवाह ज़्यादा दिन नहीं चलते, टूट जाते हैं"
तब अकस्मात ही मुझे याद आने लगते...
सवा सेर गेहूँ
किसी गाँव में शंकर नाम का एक कुरमी किसान रहता था। सीधा-सादा ग़रीब आदमी था, अपने काम-से-काम, न किसी के लेने में, न किसी...
साग-मीट
साग-मीट बनाना क्या मुश्किल काम है! आज शाम खाना यहीं खाकर जाओ, मैं तुम्हारे सामने बनवाऊँगी, सीख भी लेना और खा भी लेना। रुकोगी...
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ से बहुत कुछ ओझल है
ओझल है हत्यारों की माँद
ओझल है संसद के नीचे जमा होते
किसानों के ख़ून...
खलील जिब्रान – ‘नास्तिक’
खलील जिब्रान की किताब 'नास्तिक' से उद्धरण | Quotes from 'Nastik', a book by Kahlil Gibran
चयन: पुनीत कुसुम
"मेरा कोई शत्रु नहीं है, पर भगवान,...
पलाश के फूल
नये मकान के सामने पक्की चहारदीवारी खड़ी करके जो अहाता बनाया गया है, उसमें दोनों ओर पलाश के पेड़ों पर लाल-लाल फूल छा गए...
कविताएँ: दिसम्बर 2020
स्वाद
शहर की इन
अंधेरी झोपड़ियों में
पसरा हुआ है
मनो उदासियों का
फीकापन
दूसरी तरफ़
रंगीन रोशनियों से सराबोर
महलनुमा घरों में
उबकाइयाँ हैं
ख़ुशियों के
अतिरिक्त मीठेपन से
धरती घूमती तो है
मथनी की तरह...
नया मोर्चा
फिर अपने जूतों के फीते कसने लगे हैं—लोग
चील की छाया—गिद्ध बने
उसके पहले ही
भीतर का भय पोंछ
ट्राम-बसों में सफ़र करते—ख़ामोश होंठ
फिर हिलने लगे हैं।
हवा के...
हरिराम मीणा की क्षणिकाएँ
'आदिवासी जलियाँवाला एवं अन्य कविताएँ' से
1
जो ज़मीन से
नहीं जुड़े,
वे ही
ज़मीनों को
ले
उड़े!
2
यह कैसा अद्यतन संस्करण काल का
जिसके पाटे पर क्षत-विक्षत इतिहास
चिता पर जलते आदर्श
जिनके लिए...
इस गली के मोड़ पर
इस गली के मोड़ पर इक अज़ीज़ दोस्त ने
मेरे अश्क पोंछकर
आज मुझसे ये कहा—
यूँ न दिल जलाओ तुम
लूट-मार का है राज
जल रहा है कुल...
हमारी ज़िन्दगी
हमारी ज़िन्दगी के दिन,
बड़े संघर्ष के दिन हैं।
हमेशा काम करते हैं,
मगर कम दाम मिलते हैं।
प्रतिक्षण हम बुरे शासन,
बुरे शोषण से पिसते हैं।
अपढ़, अज्ञान, अधिकारों से
वंचित...
क़ानून
लोहे के पैरों में भारी बूट
कंधों से लटकती बंदूक़
क़ानून अपना रास्ता पकड़ेगा
हथकड़ियाँ डालकर हाथों में
तमाम ताक़त से उन्हें
जेलों की ओर खींचता हुआ
गुज़रेगा विचार और...