Tag: Oppressor
लगभग विशेषण हो चुका शासक
किसी अटपटी भाषा में दिए जा रहे हैं
हत्याओं के लिए तर्क
'एक अहिंसा है
जिसका सिक्का लिए
गांधीजी हर शहर में खड़े हैं
लेकिन जब भी सिक्का उछालते...
संध्या चौरसिया की कविताएँ
किसी आश्वस्त बर्बर की तरह
अपनी अनायास प्रवृत्तियों में
मैं देश का मध्यम हिस्सा हूँ
जो पाश की कविता में बनिया बनकर आता है
जिसे जीना और प्यार...
शोषक रे अविचल!
शोषक रे अविचल!
शोषक रे अविचल!
अजेय! गर्वोन्नत प्रतिपल!
लख तेरा आतंक त्रसित हो रहा धरातल!
भार-वाहिनी धरा,
किन्तु तुमको ले लज्जित!
अरे नरक के कीट!, वासना-पंक-निमज्जित!
मृत मानवता के अधरों...