Tag: Pallavi Mukherjee

Pallavi Mukherjee

कविताएँ: जुलाई 2021

लौट आओ तुम तुम रहती थीं आकाश में बादलों के बीच तारों के संग चाँद के भीतर खुली धूप में हरी घास में फूलों में झरते हरसिंगार में गौरैयों की आवाज़ में कोयल की मीठी...
Pallavi Mukherjee

कविताएँ: अगस्त 2020

सुनो मछुआरे सुनो मछुआरे जितने जुगनू तुम्हारी आँखों में चमक रहे हैं न टिम-टिम तारों के जैसे, वे क्या हमेशा चमकते रहते हैं इसी तरह? सुनो मछुआरे जब तुम जाल फेंकते हो सागर में, तुम्हारी बाँहों की मछलियाँ मचल-मचल...

शहर

एक शहर को कुहासे के भीतर से देखना अच्छा लगता है जब भागता हुआ शहर सिकुड़कर छोटा हो जाता है और थम जाता है कुछ देर के लिए शहर जानता है कुहासे का छँटना...
Pallavi Mukherjee

उदासी

'Udasi', Hindi Kavita by Pallavi Mukherjee उदास हो तुम कि धरती दूर-दूर तक प्यासी है गर्म रेत में धँस रहे हैं पाँव उदास हो तुम कि हलक की प्यास कड़ी होती जा रही है मिट्टी...
Pallavi Mukherjee

तुम

'Tum', a poem by Pallavi Mukherjee स्त्री कोई सड़क नहीं जिस पर चलकर तुम अपने लिए रास्ते तय करते हो न ही कोई वटवृक्ष जिसकी छाया के नीचे बैठकर सुस्ताना चाहते हो स्त्री को हरसिंगार का फूल...
Pallavi Mukherjee

टूटता आदमी

'Tootata Aadmi', a poem by Pallavi Mukherjee वह एक बेरंग दुनिया में रहता है और लिखता है प्रेम जबकि उसका चेहरा खरोंचों से भरा है जैसे किसी गिद्ध के तेज़ नाख़ूनों ने उसे खरोंच दिया हो उसका चेहरा पत्थर की...

प्रेम में स्त्री

प्रेम में एक स्त्री छूटने लगती है अपने आप से प्रेम में एक स्त्री हल्की हो जाती है पंख की तरह इतनी हल्की कि... पाँव की पायल भी उसके कानों से नहीं टकराती स्त्री सीढ़ियाँ लाँघ जाती है कुछ इस तरह जैसे...
Pallavi Mukherjee

लौट आया प्रेम

'Laut Aaya Prem', a poem by Pallavi Mukherjee एक लम्बे समय के बाद वे दोनों पास-पास थे डूब रहे थे एक दूसरे की आँखों में जैसे अथाह समुद्र में डूब रहे...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)