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Pankaj Singh

मध्यरात्रि

मध्यरात्रि में आवाज़ आती है 'तुम जीवित हो?' मध्यरात्रि में बजता है पीपल ज़ोर-ज़ोर से घिराता-डराता हुआ पतझड़ के करोड़ों पत्ते मध्यरात्रि में उड़ते चले आते हैं नींद की...
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तुम किसके साथ हो

दहकती हुई चीज़ों के आर-पार तेंदुए की तरह गुर्राता, छलाँगें मारता गुज़रता है समय देखो सब कुछ कैसा दहक रहा है जली हुई चीज़ें चमकदार कोयला बन रही...
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मत कहना चेतावनी नहीं दी गई थी

आपसी सद्भाव से समाज में शान्ति रहती है शान्ति में ही सम्भव है प्रगति और विकास ये अच्छे विचार हैं कुछ लोगों के लिए फ़ायदेमन्द एक रेशेदार जीभ...
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भविष्यफल

कोई एक अक्षर बताओ कोई रंग कोई दिशा किसी एक फूल का नाम लो कोई एक धुन याद करो कोई चिड़िया कोई माह—जैसे वैशाख खाने की किसी प्रिय चीज़ का नाम...
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वह किसान औरत नींद में क्या देखती है

वह किसान औरत नींद में क्या देखती है? वह शायद देखती है अपने तन की धरती नींद में वह शायद देखती है पसीने से भरा एक...
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वह इच्छा है मगर इच्छा से कुछ और अलग

वह इच्छा है मगर इच्छा से कुछ और अलग इच्छा है मगर इच्छा से ज़्यादा और आपत्तिजनक मगर ख़ून में फैलती रोशनी के धागों-सी आत्मा में जड़ें...
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