Tag: Pash

Paash

सच

आपके मानने या न मानने से सच को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता इन दुखते हुए अंगों पर सच न एक जून भुगती है और हर सच जून...
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लोहा

आप लोहे की कार का आनन्द लेते हो मेरे पास लोहे की बन्दूक़ है मैंने लोहा खाया है आप लोहे की बात करते हो लोहा जब पिघलता है तो भाप नहीं...
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आधी रात में

आधी रात में मेरी कँपकँपी सात रज़ाइयों में भी न रुकी सतलुज मेरे बिस्तर पर उतर आया सातों रज़ाइयाँ गीली बुख़ार एक सौ छह, एक सौ सात हर साँस पसीना-पसीना युग...
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भारत

भारत— मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द जहाँ कहीं भी प्रयोग किया जाए बाक़ी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते हैं इस शब्द के अर्थ खेतों के उन बेटों में...
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मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से

मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से क्या वक़्त इसी का नाम है कि घटनाएँ कुचलती हुई चली जाएँ मस्त हाथी की तरह एक समूचे मनुष्य...
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अपनी असुरक्षा से

यदि देश की सुरक्षा यही होती है कि बिना ज़मीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए आँख की पुतली में हाँ के सिवाय कोई भी...
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अब विदा लेता हूँ

अब विदा लेता हूँ मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूँ मैंने एक कविता लिखनी चाही थी सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं उस कविता में महकते हुए...
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तुम्हारे बग़ैर मैं होता ही नहीं

तुम्हारे बग़ैर मैं बहुत खचाखच रहता हूँ यह दुनिया सारी धक्कम-पेल सहित बेघर पाश की दहलीज़ें लाँघकर आती-जाती है तुम्हारे बग़ैर मैं पूरे का पूरा तूफ़ान होता...
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वफ़ा

बरसों तड़पकर तुम्हारे लिए मैं भूल गया हूँ कब से, अपनी आवाज़ की पहचान भाषा जो मैंने सीखी थी, मनुष्य जैसा लगने के लिए मैं उसके सारे...
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घास

'Ghaas', Hindi Kavita by Avtar Singh Sandhu 'Pash' मैं घास हूँ मैं आपके हर किये-धरे पर उग आऊँगा! बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर बना दो होस्‍टल को...
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हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई...
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सबसे ख़तरनाक

"घर से निकलना काम पर और काम से लौटकर घर आना सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना..."
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