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ज़िन्दगी का लेखा
मैंने तेरी अलकों को नहीं
अपनी उलझनों को सुलझाया है!
अपने बच्चों को नहीं
साहबज़ादों को दुलराया है!
तब तुम्हें मुझसे
शिकायत होना वाजिब है
जब साहब को भी शिकायत...
ग़ायब लोग
हम अक्षर थे
मिटा दिए गए
क्योंकि लोकतांत्रिक दस्तावेज़
विकास की ओर बढ़ने के लिए
हमारा बोझ नहीं सह सकते थेहम तब लिखे गए
जब जन गण मन लिखा...
बैलगाड़ी
जा रही है गाँव की कच्ची सड़क से
लड़खड़ाती बैलगाड़ी!एक बदक़िस्मत डगर से,
दूर, वैभवमय नगर से,
एक ही रफ़्तार धीमी,
एक ही निर्जीव स्वर से,
लादकर आलस्य, जड़ता...
प्रार्थना बनी रहीं
रोटियाँ ग़रीब की, प्रार्थना बनी रहीं!एक ही तो प्रश्न है रोटियों की पीर का
पर उसे भी आसरा आँसुओं के नीर का
राज है ग़रीब का,...
और कितनी सुविधा लेगें
हर त्रासदी में ये पेट खोलकर बैठ जाते हैं
बहुत बड़ा होता है इनका पेटइतना बड़ा कि ख़रबों के ख़र्च से बना स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी भी...
जसवीर त्यागी की कविताएँ
प्रकृति सबक सिखाती है
घर के बाहर
वक़्त-बेवक़्त
घूम रहा था
विनाश का वायरस
आदमी की तलाश मेंआदमी
अपने ही पिंजरे में क़ैद थाप्रकृति, पशु-पक्षी
उन्मुक्त होकर हँस रहे थेपरिवर्तन का पहिया
घूमता...