Tag: Prashant Tiwari
जुमलों की डकार
बातों और जुमलों का भोजन करो तो कई दिनों तक डकार आती है।मियां - "क्या बात है भई मशगूल, आज बड़ी डकार आ रही...
ख़त, जो तुम्हें भेजे नहीं
अपने मन में
हर रोज़
तुम्हें एक ख़त लिखता हूँ
और सारे इकट्ठे करते रहता हूँ,
भेजता नहीं तुम्हें!
सोचता हूँ
कि अपनी भावनाओं के उफान को
हर रोज़ तुमपर उड़ेलना
ठीक...
मुड़-मुड़के देखता हूँ
घर से लौटते वक़्त
मुड़-मुड़कर देखता हूँ,
दो-तीन जोड़ी आँखें
तब तक निहारती रहती हैं
जब तक उनकी पहुँच से
ओझल नहीं हो जाता,
लेकिन मैं नहीं देख पाता
एक बार...
अपनापा
अक्सर चलती राह में
कोई मिल जाता है
निपट अकेला
हर रोज़,
चेहरे रोज़ बदलते हैं
लेकिन सबकी पहचान
एक जैसी होती है।
कुछ तो होता है उनमें
जो एक सा होता...