Tag: Pratibha Sharma
लाल रिबन
मेरे गाँव में सफ़ेद संगमरमर से बनी दीवारें
लोहे के भालों की तरह उगी हुई हैं
जिनकी नुकीली नोकों में नीला ज़हर रंगा हुआ है
खेजड़ी के ईंट-चूने...
प्रेम का अबेकस (तीसरा भाग)
1
लड़कियाँ अपने प्रति क्रूर होती हैं
बहुत क्रूर
लड़कियाँ नाज़ुक हैं और उनकी प्रतिज्ञा भी नाज़ुक है
इतनी आसानी से टूट जाती है
सूखी फोग की टहनी की तरह
पत्थरों...
प्रेम का अबेकस (दूसरा भाग)
1
प्रेम से क्रोध तक
आग से आश्रय तक
विश्वास करने के विपरीत क्या है?
उसके लायक़ भी कुछ नही
जैसे चाँदी की एक शानदार सुई चमकती है सफ़ेद परिधि में
प्रेम...
प्रेम का अबेकस
1
प्रेम को खोने के बाद सबसे मुश्किल है
कैलेण्डर पर वर्ष गिनना और तारीख़ों के दिन दोहराना
यह ऐसा है जैसे समय की आइसक्रीम में से
स्कूप...
आइसोलेशन के अन्तिम पृष्ठ
आइसोलेशन के अन्तिम पृष्ठ
(श्रमिक)
अप्रैल के नंगे-नीले दरख़्तों और टहनियों से प्रक्षालित
ओ विस्तृत आकाश!
अपने प्रकाश के चाकुओं से
मुझ पर नक़्क़ाशी करो...
सम्बोधन हे! अरे!
1
हम अपनी कल्पनाओं में छोटी-छोटी...
आइसोलेशन में प्रेमिकाएँ
पेड़, नदी, पहाड़ और झरने
प्रेमिकाएँ उन सबसे लेती हैं उधार
एक-एक कटोरी प्रीत
और करघे की खच-खच में बहाती हुई
अपनी निर्झरिणी
वे बुन डालती हैं एक ख़ूबसूरत कालीन
जिसमें मौजूद...
‘मौन-सोनचिरी’ से कविताएँ
काव्य-संग्रह 'मौन-सोनचिरी' से प्रतिभा शर्मा की कविताएँ
अमृता! हम नहीं हैं तृप्ताएँ
आज फिर 'नौ सपने' पढ़े
जैसे एक तीर्थ कर लिया
वो अकेले हंस का
धवल पँख
अभी भी हिल...