Tag: Purnima Maurya
ख़तरनाक दुःख
मेरा दुःख
नितान्त मेरा था
जो कुछ-कुछ
मेरी माँ या उनके जैसी तमाम
औरतों के दुःख-सा
ग़ैर-ज़रूरी
मगर ख़तरनाक घोषित था
जिन्हें
घर-गृहस्थी में फँस, न जीने की फ़ुर्सत थी
न मरने की।जिनके...
आज़ाद कवि
अपराधी-सा
जब उन्हें पकड़ा गया
वो हमेशा की तरह अपने कामों में व्यस्त थे,
लहूलुहान जंगल और नदी के ज़ख़्मों पर मलहम लगा
फूलों को सुरक्षित करने के...
साबुतपन
पुरुष की नज़र में
नमक होती है
स्त्री
बिना जिसके बेज़ायका ज़िन्दगी,
करता है इस्तेमाल
स्वादानुसार
न ज़्यादा, न कम
हरदम।वह नयी-नयी चीज़ों में
रमाता है मन
बदलता है स्वाद
ख़ुश होता है
ख़ामख़ा अहसास से
पर...
समन्दर
स्त्री
सिर्फ़ नमक नहीं
कि मनमाफ़िक इस्तेमाल कर
बन्द कर डिब्बे में
सजा दी जाए
रसोई के किसी कोने में
खाने की किसी टेबल पर।वह
लहराता समन्दर है
असीम सम्भावनाओं का
पनपते हैं जहाँ
अनमोल...
नियम, प्रश्न बिद्ध, सीटी
नियम
पिंजरे में बन्द मैना
घर की औरतों से
गाती-बतियाती
फुदकती
उड़ते पंछियों को देख
पंख फड़फड़ाती
खा लेती, जो मिल जाता।आग नज़रों के नीचे
रौबदार मूँछे देख
वह पिंजरे में भी
फुदकती न थी
सतर्कता...
पूर्णिमा मौर्या की कविताएँ
बेल दूँ
जब भी बनाती हूँ लोई
और बेलती हूँ रोटी
तो मन होता है
दुनिया की सारी गोल मोल चीजें
बेल दूँ।बेल दूँ धरती
बेल दूँ सूरज
बेल दूँ व्यवस्था
बेल...
बाबा की अलमारी
रहस्यमयी लगती थी
हम बहनों को
हरे रंग की
बाबा की छोटी अलमारी,
मुरचाई मैली-सी
फिर भी
लगती हमको प्यारी।यूँ तो घर के हर कोने में
होती अपनी आवाजाही
पर उसको छूने...