Tag: Rajkamal Choudhary

Rajkamal Chaudhary

पहली कविता की आख़िरी शाम

पहली कविता की आख़िरी शाम नीले दरख़्तों के साए में तुम्हारे बेचैन हाथ पीले पड़ते हुए। क्राटन के लम्बे पत्तों की तरह हिलते हैं यों दरख़्त भव्य काले हैं घनी...
Rajkamal Chaudhary

रिक्शे पर एक सौ रातें

गरदन के नीचे से खींच लिया हाथ। बोली—अंधकार हयनि (नहीं हुआ है)! सड़कों पर अब तक घर-वापसी का जुलूस। दफ़्तर, दुकानें, अख़बार अब तक सड़कों पर। किसी मन्दिर के...
Rajkamal Chaudhary

अनायास

फिर भी कभी चला जाऊँगा उसी दरवाज़े तक अनायास जैसे, उस अँधियारे गलियारे में कोई अब तक रहता हो। फिर भी, दीवार की कील पर अटका...
Rajkamal Chaudhary

नींद में भटकता हुआ आदमी

नींद की एकान्त सड़कों पर भागते हुए आवारा सपने सेकेण्ड शो से लौटती हुई बीमार टैक्सियाँ भोथरी छुरी जैसी चीख़ें बेहोश औरत की ठहरी हुई आँखों की...
Upendranath Ashk, Rajkamal Chaudhary

उपेन्द्रनाथ अश्क का राजकमल चौधरी को पत्र

5, ख़ुसरोबाग़ रोड इलाहाबाद, 21-11-61 प्रिय राजकमल, तुम्हारा पत्र मिला। उपन्यास (नदी बहती है) की प्रतियाँ भी मिलीं। मैं उपन्यास पढ़ भी गया। रात ही मैंने उसे...
Rajkamal Chaudhary

चाय के प्याले में

दुःख करने का असली कारण है : पैसा— पहले से कम चीज़ें ख़रीदता है। कश्मीरी सेव दिल के मरीज़ को चाहिए तो क्या हुआ? परिश्रम अब पहले से...
Rajkamal Chaudhary

रात्रिदग्ध एकालाप

1 बारूद के कोहरे में डूब गए हैं पहाड़, नदी, मकान, शहर के शहर। बीवी से छिपाकर बैंक में पैसे डालने का मतलब नहीं रह गया है अब। 2 मुझे चुप...
Rajkamal Chaudhary

बन्द कमरे में क़ब्रगाह

आदमी कुछ कहना चाहता है मगर एक ऐसा क्षण भी आता है जब उसकी आवाज़ सीने में दबी रह जाती है और वह कह...
Rajkamal Chaudhary

कंकावती

राजकमल चौधरी के कविता संग्रह 'कंकावती' से कविताएँ | Poems from 'Kankavati', a poetry collection by Rajkamal Chaudhary समय के बीते हुए से प्राप्त कर लेना...
Rajkamal Chaudhary

व्याकरण का तृतीय पुरुष

राजकमल चौधरी की कहानी 'व्याकरण का तृतीय पुरुष' | 'Vyakaran Ka Tritiya Purush', a story by Rajkamal Chaudhary सुभाष जानता है। सुभाष जानना नहीं चाहता...
Rajkamal Chaudhary

इस अकाल बेला में

होश की तीसरी दहलीज़ थी वो हाँ! तीसरी ही तो थी, जब तुम्हारी मुक्ति का प्रसंग कुलबुलाया था पहली बार मेरे भीतर अपनी तमाम तिलमिलाहट लिए दहकते लावे सा पैवस्त होता...
Rajkamal Chaudhary

तुम मुझे क्षमा करो

'Tum Mujhe Kshama Karo', a poem by Rajkamal Choudhary बहुत अँधी थीं मेरी प्रार्थनाएँ। मुस्कुराहटें मेरी विवश किसी भी चन्द्रमा के चतुर्दिक उगा नहीं पायी आकाश-गंगा लगातार फूल... चन्द्रमुखी! बहुत अँधी थीं मेरी प्रार्थनाएँ। मुस्कुराहटें मेरी...
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