Tag: Raushniyaan

Sarwat Zahra

बे परों की तितली

ये झाड़न की मिट्टी से मैं गिर रही हूँ ये पंखे की घूं-घूं में मैं घूमती हूँ ये सालन की ख़ुशबू पे मैं झूमती हूँ मैं बेलन से चकले पे बेली...
Arifa Shahzad

गुफ़्तगू नज़्म नहीं होती है

गुफ़्तगू के हाथ नहीं होते मगर टटोलती रहती है दर ओ दीवार फाड़ देती है छत शक़ कर देती है सूरज का सीना उंडेल देती है हिद्दत-अंगेज़ लावा ख़ाकिसतर...
Naina Adil

चार दीवारी में चुनी हुई औरत

बंद के उस तरफ़ ख़ुद उगी झाड़ियों में लगी रस भरी बेरियाँ ख़ूब तैयार हैं पर मेरे वास्ते उनको दामन में भर लेना मुमकिन नहीं ऐ...
Geetanjali

नीम का पेड़

मेरे मिट्टी के घर के पीछे था वो पेड़ बरसों से नीम का पेड़ जिस पे खेलते-चढ़ते थे अक्सर झूलते थे हम उसी की छांव में गर्मी की अपनी...
Shahnaz Nabi

मीर जी घर से जब भी निकलो

मीर जी घर से जब भी निकलो क़श्क़ा खींचो दैर में बैठो या अब तर्क इस्लाम करो नाम तो है पहचान तुम्हारी किस किस को समझाओगे अब तस्बीह के बिखरे...
Shivangi Goel

इज़्ज़त बरक़रार रहती है!

उसने मुझसे कहा कि मैं तुमसे 'प्रेम' करता हूँ ये भी कहा कि मैं अपनी पत्नी की 'इज़्ज़त' करता हूँ जब उसके शरीर से बह रहा...
Varsha Gorchhia

शायरा

मेरे होने की वारदात को पेज थ्री की रंगीन सुर्खियों की तरह पढ़ा जाता है मेरी शख़्सियत का सुडोल होना ज़रूरी है और जिस्म की तराश का भी घनी...
Nasim Syed

तुम्हारे बस में ये कब है

तुम हमारी लिखने वाली उँगलियों की शमएँ गुल कर दो हमारे लफ़्ज़ दीवारों में चुनवा दो हमारे नाम के उपले बनाओ अपनी दीवारों पे थोपो अपने चूल्हों में जला दो सब तुम्हारे...
Parveen Tahir

मेरी हस्ती मेरा नील कमल

मेरे ख़्वाब जज़ीरे के अंदर इक झील थी निथरे पानी की इस झील किनारे पर सुन्दर इक नील कमल जो खिलता था इस नील कमल के पहलू में इक...

ग्लोबल वॉर्मिंग

मेरे दिल की सतह पर टार जम गया है साँस खींचती हूँ तो खिंची चली आती है कई टूटे तारों की राख जाने कितने अरमान निगल गयी हूँ साँस...
Sophia Naz

लड़की (क़ंदील बलोच के नाम)

पतले नंगे तार से लटकी जलती, बुझती, बटती वो लड़की जो तुम्हारी धमकी से नहीं डरती वो लड़की जिसकी मांग टेढ़ी है अंधी तन्क़ीद की कंघी से नहीं सुलझती वो लड़की जिसकी हर...
Yasmeen Hameed

क्या करूँ

क्या करूँ मैं आसमां को अपनी मुट्ठी में पकड़ लूँ या समुन्दर पर चलूँ पेड़ के पत्ते गिनूँ या टहनियों में जज़्ब होते ओस के क़तरे चुनूँ डूबते सूरज को उंगली...
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