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ओ मेरे सब अपनो तुमसे
ओ मेरे सब अपनो तुमसे
मुझे बग़ावत करनी होगी!अब तक जी ली गई उमर को
मैंने तीखी धूप खिलायी,
सूरज की सौगंध मुझे है
मैंने भर-भर प्यास पिलायी,
अब...
जहाँ ढेर सारा अँधेरा था
जहाँ ढेर सारा अँधेरा था
वहीं से मैंने रोशनी की शुरुआत कीजहाँ अस्तित्व में आना गुनाह था
वहीं से मैंने रोज़ जन्म लियाजहाँ रोने तक की आज़ादी नहीं थी
वहाँ...
प्रेम में
'Prem Mein', a poem by Vikrant Mishraप्रेम में होते हुए मैं और तुम,
एक आयत के भीतर
उसकी चारों भुजाओं को छूता
एक वृत्त खींचने की कोशिश करते...