Tag: Religious Extremism
धर्म की आड़
इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किये जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर और ज़िद की जाती है,...
शरीफ़न
जब क़ासिम ने अपने घर का दरवाज़ा खोला तो उसे सिर्फ़ एक गोली की जलन थी जो उसकी दाहिनी पिंडली में गड़ गई थी,...
नदी सरीखे कोमल ईश्वर की रक्षा हेतु
हम जिस भी सर्वोच्च सत्ता के उपासक हैं
इत्तेला कर दें उसे
शीघ्रातिशीघ्र
कि हमारी प्रार्थना और हमारे ईश्वर के मध्य
घुसपैठ कर गए हैं धर्म के बिचौलिए
बेमतलब...
तारबंदी
जालियों के छेद
इतने बड़े तो हों ही
कि एक ओर की ज़मीन में उगी
घास का दूसरा सिरा
छेद से पार होकर
साँस ले सके
दूजी हवा में
तारों की
इतनी...
राही मासूम रज़ा – ‘टोपी शुक्ला’
प्रस्तुति: पुनीत कुसुम
"मुझे यह उपन्यास लिखकर कोई ख़ुशी नहीं हुई।"
"समय के सिवा कोई इस लायक़ नहीं होता कि उसे किसी कहानी का हीरो बनाया...
मुझसे पूछो
'Mujhse Poochho', a nazm by Tasneef Haidar
मुझसे पूछो
मेरी सारी उम्र
दूसरे लोगों की तक़लीद में गुज़री है
हुक्म की इक गहरी तामील में गुज़री है
एक लकीर...
मेरे दोस्त नहीं हो सकते
यह नज़्म यहाँ सुनें:
https://youtu.be/NpAjX2H21Uk
नस्लों में ख़ूँ की ख़ुश्बू फैलाने वाले
धर्म के नाम पे लड़ने और लड़ाने वाले
मेरे दोस्त नहीं हो सकते
पागल हो जाने वाले...
साक्ष्य
'Saakshya', a poem by Harshita Panchariya
जाते-जाते उसने कहा था,
नरभक्षी जानवर हो सकते हैं
पर मनुष्य कदापि नहीं,
जानवर और मनुष्य में
चार पैर और पूँछ के सिवा
समय...
राख
खुद को एक दूसरे के ऊपर
प्रतिस्थापित करने के उद्योग में
उन्मादी भीड़-समूह ने
फेंके एक-दूसरे के ऊपर अनगिनत पत्थर
जमकर बरसाई गईं गोलियां
पार की गईं हैवानियत की...
निशां नहीं मिटते
दुनिया की सारी पाक किताबें
कहती हैं
कोई वस्तु बेकार नहीं
कोई हलचल, कोई बात
कोई दिन, कोई रात
कोई कण, कोई क्षण
बेमतलब नहीं
दुनिया की सारी पाक किताबें
कहती हैं
खून...
सभ्यता के वस्त्र चिथड़े हो गए हैं
कुछ अंह का गान गाते रह गए।
कुछ सहमते औ' लजाते रह गए।
सभ्यता के वस्त्र चिथड़े हो गए हैं,
हम प्रतीकों को बचाते रह गए।
वेद मंत्रों...