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बाँध भाँगे दाओ
"लोग घर में मरते थे। बाज़ार में मरते थे। राह में मरते थे। जैसे जीवन का अन्तिम ध्येय मुट्ठी भर अन्न के लिए तड़प-तड़पकर मर जाना ही था।"
अदम्य जीवन
पचास के दशक के आरम्भ में पड़े बंगाल के अकाल के बारे में रांगेय राघव ने यह रिपोर्ताज लिखा था, जो 'तूफानों के बीच' रिपोर्ताज संग्रह में प्रकाशित हुआ। बंगाल के अकाल के दौरान जो बुरी हालत वहाँ रहने वाले लोगों की हुई थी, रांगेय राघव उसे बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। यह रिपोर्ताज पच्चीस लोगों के घर में से केवल पाँच लोगों के बचने और एक ही कब्र में तीन-तीन लोगों के दफनाए जाने की घटनाओं का विवरण, और उस समय की बंगाल की हालत बड़े ही संवेदनशील और प्रभावी रूप से हमारे सामने रखता है। रांगेय ने यह रिपोर्ताज केवल उन्नीस वर्ष की आयु में लिखा था जब उन्हें डॉक्टरों के एक दल के साथ रिपोर्टर के रूप में बंगाल भेजा गया था।