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कविताएँ: जुलाई 2021
लौट आओ तुम
तुम रहती थीं
आकाश में
बादलों के बीच
तारों के संग
चाँद के भीतर
खुली धूप में
हरी घास में
फूलों में
झरते हरसिंगार में
गौरैयों की आवाज़ में
कोयल की मीठी...
मृत्यु, नहीं आते सपने इन दिनों, लौटना
मृत्यु
नहीं आना चाहिए उसे जिस तरह
वह आयी है उस तरह
जीवन की अनुपस्थिति में
निश्चित है आना उसका,
पर इस अनिश्चित ढलते समय में
वह आयी है आतातायी...
कविताएँ: अक्टूबर 2020
किसी रोज़
किसी रोज़
हाँ, किसी रोज़
मैं वापस आऊँगा ज़रूर
अपने मौसम के साथ
तुम देखना
मुझ पर खिले होंगे फूल
उगी होंगी हरी पत्तियाँ
लदे होंगे फल
मैं सीखकर आऊँगा
चिड़ियों की...
अबकी अगर लौटा तो
अबकी अगर लौटा तो
बृहत्तर लौटूँगा
चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं
कमर में बाँधे लोहे की पूँछें नहीं
जगह दूँगा साथ चल रहे लोगों को
तरेरकर न देखूँगा...
कविताएँ: अक्टूबर 2020
1
इन घरों में घास क्यों उगी है
कौन रहता था यहाँ
काठ पर ताला किसकी इच्छा से लगाया है
इस आँगन को लीपने वाली स्त्री
और उसका आदमी
कहाँ...
कभी न लौटने के लिए मत जाना
सुनो!
जब जाना तो इस तरह मत जाना
कि कभी लौट न सको उन्हीं रास्तों पर वापस
जाते हुए गिराते जाना रास्ते में ख़त का पुर्ज़ा, कोई...
मैं कभी पीछे नहीं लौटूँगी
मैं वह औरत हूँ जो जाग उठी है
अपने भस्म कर दिए गए बच्चों की राख से
मैं उठ खड़ी हुई हूँ और
बन गयी हूँ एक...
लौटना
जीवन के अन्तिम दशक में
कोई क्यों नहीं लौटना चाहेगा
परिचित लोगों की परिचित धरती पर
निराशा और थकान ने कहा—
जो कुछ इस समय सहजता से उपलब्ध है
उसे...
अनायास
फिर भी कभी चला जाऊँगा उसी दरवाज़े तक अनायास जैसे,
उस अँधियारे गलियारे में कोई अब तक रहता हो।
फिर भी, दीवार की कील पर अटका...
मैं जहाँ कहीं से लौटा
मैंने कभी फूल नहीं तोड़े,
जब भी उन्हें छुआ
अपनी उंगलियों के पोरों पर
एक सतर्क कृतज्ञता महसूस की
मैंने किताबों में निशानदेही नहीं की कभी
नहीं मोड़ा कोई...
काली-काली घटा देखकर
काली-काली घटा देखकर
जी ललचाता है,
लौट चलो घर पंछी
जोड़ा ताल बुलाता है।
सोंधी-सोंधी
गंध खेत की
हवा बाँटती है,
सीधी-सादी राह
बीच से
नदी काटती है,
गहराता है रंग और
मौसम लहराता है।
लौट...
हम सब लौट रहे हैं
हम सब लौट रहे हैं
ख़ाली हाथ
भय और दुःख के साथ लौट रहे हैं
हमारे दिलो-दिमाग़ में
गहरे भाव हैं पराजय के
इत्मीनान से आते समय
अपने कमरे को भी...