Tag: Riots
सईदा के घर
सईदा के घर तन्दूर पर सिकी रोटियाँ
मैं रोज़ खाती प्याज़ और भुने आलू के साथ
मैं और सईदा मेरी प्यारी सहेली—
हम जाते गलियों से होते हुए
बाज़ार...
राही मासूम रज़ा – ‘टोपी शुक्ला’
प्रस्तुति: पुनीत कुसुम
"मुझे यह उपन्यास लिखकर कोई ख़ुशी नहीं हुई।"
"समय के सिवा कोई इस लायक़ नहीं होता कि उसे किसी कहानी का हीरो बनाया...
दंगा-फ़साद
अनुवाद: पद्मजा घोरपड़ेजातीय दंगा-फ़साद की गोलाबारी में
मर गये मेरे बाप की लाश उठाते हुए
मुझे लगा
मेरा ही विभाजन हो गया है
देश से!
मुख्यमन्त्री निधि से मिला...
कविताएँ – मई 2020
कोरोना के बारे में जानती थी दादी
मेरी बूढ़ी हो चली दादी को
हो गयी थी सत्तर वर्ष पहले ही
कोरोना वायरस के आने की ख़बरवो कह...
अपनी केवल धार
"जब तक इंसान खाना खाएगा, तब तक उसको तीन चीज़ों की ज़रूरत रहेगी ही। खाने की, आग की और चाक़ू की। खाना किसान उगाता...
ग़रीबों की बस्ती
यह है कलकत्ता का बहूबाज़ार, जिसके एक ओर सरकारी अफ़सरों तथा महाजनों के विशाल भवन हैं और दूसरी ओर पीछे उसी अटपट सड़क के...
प्रीता अरविन्द की कविताएँ
Poems: Prita Arvind
दंगे
दिल्ली उन्नीस सौ चौरासी
मुम्बई उन्नीस सौ बानवे
गुजरात दो हज़ार दो
मुजफ़्फ़रनगर दो हज़ार तेरह
और अब फिर दिल्ली दो हज़ार बीस,
कोई छप्पन लोग मारे...
दंगा
'Danga', poems by Manmeet Soni1बस, रेल, पेट्रोल पम्प तो
कोई भी फूँक सकता हैतू
ख़ुद को फूँक
मेरे दंगाई भाईफिर देख
तू पानी-पानी हो जाएगा।2 हम जब भी
घर से निकलते...
आग
'Aag', a poem by Poonam Sonchhatraआग... बेहद शक्तिशाली है
जला सकती है शहर के शहर
फूँक सकती है जंगल के जंगलआग... नहीं जानती
सजीव-निर्जीव का भेदवह नहीं...
दंगा
'Danga', poems by Gorakh Pandey1आओ भाई बेचू, आओ
आओ भाई अशरफ़, आओ
मिल-जुल करके छुरा चलाओ
मालिक रोज़गार देता है
पेट काट-काटकर छुरा मँगाओ
फिर मालिक की दुआ मनाओ
अपना-अपना धरम...
अमृतसर आ गया है
"उसने ध्यान से अपने कपड़ों की ओर देखा, अपने दोनों हाथों की ओर देखा, फिर एक-एक करके अपने दोनों हाथों को नाक के पास ले जा कर उन्हें सूँघा, मानो जानना चाहता हो कि उसके हाथों से खून की बू तो नहीं आ रही है।"
सच यही है
'Sach Yahi Hai', a poem by Mohandas Naimishraiसच यही हैमंदिर में आरती गाते हुए भी
नज़दीक की
मस्जिद तोड़ने की लालसा
हमारे भीतर जागती रहती है
और मस्जिद में...