Tag: Sandeep Pareek
तब वे कवि हो जाते हैं
जब बच्चे लम्बी साँस लेकर
मारते हैं किलकारियाँ
तब गौरैया की तरह उड़ता है माँ का मन
जब बच्चों की कोमल हथेलियाँ
छूती हैं मिट्टी
तब बन जाते हैं...
गाँव की खूँटी पर
मेरे गाँव के धनाराम मेघवाल को जिस उम्र में
जाना चाहिए था स्कूल
करने चाहिए थे बाबा साहब के सपने पूरे
उस उम्र में उसने की थी...
चिलम में चिंगारी और चरखे पर सूत
मेरे बच्चो! अपना ख़याल रखना
आधुनिकता की कुल्हाड़ी
काट न दे तुम्हारी जड़ें
जैसे मोबाइलों ने
लोक-कथाओं और बातों के पीछे
लगने वाले हँकारों को काट दिया है जड़ों सहित
वर्तमान...
जिस दिशा में मेरा भोला गाँव है
क्या बारिश के दिनों धोरों पर गड्डमड्ड होते हैं बच्चे
क्या औरतों के ओढ़नों से झाँकता है गाँव
क्या बुज़ुर्गों की आँखों में बचा है काजल
क्या स्लेट...