Tag: Save Jungle
मैंने कभी चिड़िया नहीं देखी
'Maine Kabhi Chidiya Nahi Dekhi', a poem by Usha Dashoraअबकी बार जो आँख की पलक का बाल टूटे
उल्टी मुठ्ठी पर रख
माँगना विश
कि
तुम्हारे मोबाइल की...
विकास की क़ीमत
'Vikas Ki Qeemat', a poem by Rachanaवो कह रहे हैं कि हम विकसित हो रहे हैं
बढ़ रहे हैं आगे
चढ़ रहे हैं सीढ़ियाँ सभ्यता की
दिन...
जंगलजातकम्
"हे भद्र, हमारे पूर्वजों और मनुष्यों का बड़ा ही अंतरंग संबंध रहा है। उनके लिए हम अपने पुष्प, अपने बीच छिपी सारी संपदा, कंद-मूल, फल, पशु-पक्षी सब कुछ निछावर कर चुके हैं और आज भी करने के लिए प्रस्तुत हैं। विश्वास करें, शुरू से ही कुछ ऐसा नाता रहा है कि हमें भी उनके बिना खास अच्छा नहीं लगता। जवाब में उन्होंने भी हमें भरपूर प्यार दिया है। लेकिन आप? ...हमें संदेह है कि आप मनुष्य हैं!"