Tag: Seema Singh
सहेजने की आनुवांशिकता में
कहीं न पहुँचने की निरर्थकता में
हम हमेशा स्वयं को चलते हुए पाते हैं
जानते हुए कि चलना एक भ्रम है
और कहीं न पहुँचना यथार्थ
दिशाओं के...
मृत्यु, नहीं आते सपने इन दिनों, लौटना
मृत्यु
नहीं आना चाहिए उसे जिस तरह
वह आयी है उस तरह
जीवन की अनुपस्थिति में
निश्चित है आना उसका,
पर इस अनिश्चित ढलते समय में
वह आयी है आतातायी...
कितनी कम जगहें हैं प्रेम के लिए
कितना तो सहज होता है
मौसम का यूँ ही मीठा हो जाना
शेफालियों का अनायास झर जाना
बारिशों का सोंधा हो जाना
भर जाना आकाश का सम्भावनाओं से
और...
ब्रह्म-मुहूर्त
एक वे थीं कि जाग रहीं सदियों से
उनकी नींदों में घुला था तारा भोर का
आद्रा नक्षत्र की बाँह थामे
दिन आरम्भ होता उनके अभ्यस्त हाथों से
फिर...
तुम्हारे पाँव
तुम ढूँढ लेती थीं जाने कैसे
हर छोटी-छोटी चीज़ में ख़ुशी,
उदासियों को बंद कर दिया था तुमने
अपनी रसोई में माचिस के एक डिब्बे में
और जलाते हुए...
दाह
दुःख भरे दिनों में वे गातीं उदासी के गीत
सुख से लदे दिनों की धुन भी जाने क्यों उदास ही होती
कामनाओं में लिपटी छोटी-छोटी प्रार्थनाएँ
उनकी इच्छाओं...
कुछ जोड़ी चप्पलें, इमाम दस्ता
कुछ जोड़ी चप्पलें
उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता कि
मनुष्य होने के दावे कितने झूठे पड़ चुके थे
तुम्हारी आत्म संलिप्त दानशीलता के बावजूद,
थोड़ा-सा भूगोल लिए आँखों में
वे बस...