Tag: Shahid Suman
तन्हाई
एक टुकड़ा धूप का
आया मुझे जगाने
मुझसे कहा
उठो श्रीमान
सुबह कितनी प्यारी है
धूप कितनी न्यारी है
मैंने कहा जाओ कहीं और
ये दिन सुबह व शाम
मेरे लिए नहीं
बस...
एक नज़्म
कितनी हलचलों को
खुद में समेटकर तुम
कितना खामोश हो
बस एक लहर सी उठती मन में
सराबोर कर वापस लौट जाती है
घुलते सूरज को सौंप देता हूँ तुम्हें
ताकि...
पानी की बूंदे
हवा में तैरते बादलों के टुकड़े
पीठ पर सवार पानी की बूंदें
जो छोड़ गया तेरी छत पर
क्या पता शायद
वो रहमतों की बूंदें
मेरी हिस्से में थी...
हे मेरी तुम
हे मेरी तुम...
गंगा, गगन और तुम
तीनों स्थिर क्यों हो
क्यों खामोश हो
अपने बदन पर
गर्द-ओ-ग़ुबार को अटते हुए
कुछ बोलते क्यों नहीं
उगते जख्मों पर
समझता हूँ
तुम्हारे कोलाज़ को
मनअन्तस्...