Tag: Shweta Madhuri
निरीह रस्ते
कभी चलो किसी रस्ते पर
तो बटोरते चलना खुद को
क्यूंकि जिन रस्तों पर
छोड़ आते हैं हम
अपना एक भी कतरा...
मुक्ति मार्ग पर चलने से पहले
उन रास्तों...
तुम बादल बन जाओ
तुम अगर बादल बन जाओ
तुम्हें तकिया बना कर
मैं सो जाऊं कुछ देर..
ठंड लगे तो छुप जाऊं तुम में
ओढ़ लूं तुम्हें अपने चारों ओर..
जो डर...
शब्द बीजों की गूंजा
कुछ शब्दों, मात्राओं और पंक्तियों के
बीज बिखेरती हूँ मैं क्षितिज पर...
सुना है, सभी मन भर टिमटिमाएंगे आज,
आज रात, शोर बहुत होगा छत पर...
बादलों की कुछ...
गीली मिट्टी पर मेरे पाँव
अच्छा लगता है मुझे चाहनाओं की जमीन पर
अपने पांवों के निशान देखना,
इसीलिए सुन्न पथरीले रास्तों से उतर कर
अपने नंगे पाँव कभी-कभी गीली जमीन पर रख देती...
रात का अपनापन
जब सब कुछ चुप हो, निःशब्द
तब का शोर सबसे तीव्र होता है।
बारिश की आखिरी बूँद का धीरे से भी
ज़मीन पर पैर रखना सुनाई दे...
बातों की पीली ओढ़नी
सुनो चाँद...
उस रात जब तुम आसमान में देर से उठे,
मैं बैठी थी वहीं किसी चौराहे पर शब्दों की, मात्राओं की और उनमें उलझी मुड़ी...
जब वो कविताएँ लिखता है
दो चेहरे उगे होते हैं उसके
जब वो कविताएँ लिखता है,
दिखते हैं दोनों ही मुझे
एक दूसरे में अझुराए हुए,
एक उगा होता है
स्याही लगे हाँथों की उंगलियों में,
दूसरा...
खोइंछा
दुआओं का जो खोइंछा तुमने
मेरे आँचल के छोर में डाला था
मैंने उन्हें एहसासों से बांध लिया है...
एक-एक दाने को बड़े सलीके से
रस्ते के लिए सहेज रखा है
चावल,...
रंगबिरंगी परछाइयाँ
जैसे रात और दिन के बीच चाँद
चिपका रहता है आसमान से,
वैसे ही आजकल
बड़ी, गोल बिंदी भाती है मुझे
मेरे दोनों भवों के बीचोंबीच...
उस चाँद के हिस्से...
प्रत्युत्तर
तीसरे पहर के बाद का अनुराग
अक्सर अपनी बाकी उम्र जीने के लिए,
फिर मिलता है..
हथेलियों की मेहंदी की खुरचन
जब वो नदी में घोलती है
तब किनारों...