Tag: Solitude
त्रस्त एकान्त
स्थानान्तरण से त्रस्त एकान्त
खोजता है निश्चित ठौर
भीतर का कुछ
निकल भागना चाहता
नियत भार उठाने वाले कंधों
और निश्चित दूरी नापने वाले
लम्बे क़दमों को छोड़
दिन के हर...
जाल
मकड़ी के जालों से ज़ियादा प्रभावित किसी और चीज़ से नहीं हुआ मैं। हर बार उसे झाड़ू से या झालर से झाड़कर हटा दिया...
एकान्त के स्पर्श
दूर से आती आवाज़,
जिसके स्वर स्पष्ट नहीं,
बस एक गूँज है—हवा में तैरती हुई।
लगता है जिस हवा पर यह सवार हो आती है,
उसी पर लौट...
जब कोई क्षण टूटता
वह
मेरी सर्वत्रता था
मैं
उसका एकान्त—
इस तरह हम
कहीं भी अन्यत्र नहीं थे।
जब
कोई क्षण टूटता
वहाँ होता
एक अनन्तकालीन बोध
उसके समयान्तर होने का
मुझमें।
जब
कोई क्षण टूटता
तब मेरा एकान्त
आकाश नहीं
एक छोटा-सा...
डी. एच. लॉरेंस की कविता ‘उखड़े हुए लोग’
अनुवाद: रामधारी सिंह 'दिनकर'
अकेलेपन से जो लोग दुःखी हैं,
वृत्तियाँ उनकी
निश्चय ही, बहिर्मुखी हैं।
सृष्टि से बाँधने वाला तार
उनका टूट गया है;
असली आनन्द का आधार
छूट गया है।
उद्गम...
सुबह, धुआँ, एकान्त के स्पर्श
सुबह
रात भर ओस में डूबी डाल पर बैठकर चिड़िया कुछ कहकर गई है।
सूर्य के ललाट से उठती किरणें धरती का तन छूती हैं और...