Tag: Sudama Pandey Dhoomil
बीस साल बाद
बीस साल बाद
मेरे चेहरे में वे आँखें लौट आयी हैं
जिनसे मैंने पहली बार जंगल देखा है:
हरे रंग का एक ठोस सैलाब जिसमें सभी पेड़...
कविता के भ्रम में
क्या तुम कविता की तरफ़ जा रहे हो?
नहीं, मैं दीवार की तरफ़
जा रहा हूँ।
फिर तुमने अपने घुटने और अपनी हथेलियाँ
यहाँ क्यों छोड़ दी हैं?
क्या...
उस औरत की बग़ल में लेटकर
'Us Aurat Ki Bagal Mein Letkar', a poem by Dhoomil
मैंने पहली बार महसूस किया है
कि नंगापन
अन्धा होने के ख़िलाफ़
एक सख़्त कार्यवाही है
उस औरत की बग़ल...
कुछ सूचनाएँ
'Kuchh Soochnaaein', a poem by Sudama Pandey Dhoomil
सबसे अधिक हत्याएँ
समन्वयवादियों ने कीं।
दार्शनिकों ने
सबसे अधिक ज़ेवर खरीदा।
भीड़ ने कल बहुत पीटा
उस आदमी को
जिस का मुख ईसा...
सार्वजनिक ज़िन्दगी
मैं होटल के तौलिये की तरह
सार्वजनिक हो गया हूँ
क्या ख़ूब, खाओ और पोंछो,
ज़रा सोचो,
यह भी क्या ज़िन्दगी है
जो हमेशा दूसरों के जूठ से गीली रहती...
रोटी और संसद
एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता...
राजकमल चौधरी
सोहर की पंक्तियों का रस
(चमड़े की निर्जनता को गीला करने के लिए)
नये सिरे से सोखने लगती हैं
जाँघों में बढ़ती हुई लालचे से
भविष्य के रंगीन...
कविता
उसे मालूम है कि शब्दों के पीछे
कितने चेहरे नंगे हो चुके हैं
और हत्या अब लोगों की रुचि नहीं –
आदत बन चुकी है
वह किसी गँवार...
गाँव
'Gaon', a poem by Sudama Pandey Dhoomil
मूत और गोबर की सारी गंध उठाए
हवा बैल के सूजे कंधे से टकराए
खाल उतारी हुई भेड़-सी
पसरी छाया नीम...
अकाल-दर्शन
Akal Darshan | Hindi Kavita by Dhoomil
भूख कौन उपजाता है—
वह इरादा जो तरह देता है
या वह घृणा जो आँखों पर पट्टी बाँधकर
हमें घास की...
मोचीराम
Mochiram | a poem by Dhoomil
राँपी से उठी हुई आँखों ने मुझे
क्षण-भर टटोला
और फिर
जैसे पतियाये हुए स्वर में
वह हँसते हुए बोला—
बाबूजी! सच कहूँ— मेरी...
नक्सलबाड़ी
'सहमति...
नहीं, यह समकालीन शब्द नहीं है
इसे बालिग़ों के बीच चालू मत करो'
—जंगल से जिरह करने के बाद
उसके साथियों ने उसे समझाया कि भूख
का इलाज नींद...